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जम्मू-कश्मीर में विधायकों के मनोनयन पर क्यों हो रहा विवाद, नई विधानसभा में इससे क्या बदलेगा?

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जम्मू कश्मीर में उपराज्यपाल द्वारा विधानसभा में पांच सदस्यों को नामित करने के प्रस्तावित कदम पर विवाद हो रहा है। जहां राजनीतिक दल इसका समर्थन या विरोध कर रहे हैं तो वहीं कानूनी विशेषज्ञों ने भी इस मुद्दे पर अलग-अलग राय रखी है। आइये जानते हैं कि जम्मू कश्मीर में सदस्यों के मनोनयन का मुद्दा क्या है?

जम्मू कश्मीर में हाल ही में विधानसभा के चुनाव संपन्न हुए। इस चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेतृत्व वाले गठबंधन को जीत मिली है। वहीं आम आदमी पार्टी, माकपा और कुछ निर्दलीय विधायकों ने सभी सरकार को समर्थन दिया है। उमर अब्दुल्ला 16 अक्तूबर को सुबह 11:30 बजे एसकेआईसीसी, श्रीनगर में पद और गोपनीयता की शपथ लेंगे। उधर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा द्वारा विधानसभा में पांच सदस्यों को नामित करने के प्रस्तावित कदम पर विवाद खड़ा हो गया है। नेकां, कांग्रेस समेत कई दल इसे गैर-संवैधानिक बता रहे हैं। वहीं भाजपा ने कहा है कि विधायकों का मनोनयन पूरी तरह से नियमों के अनुसार है।

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मामला यहां से बढ़कर अब अदालत की चौखट तक भी पहुंच चुका है। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल को विधानसभा में सदस्यों को नामित करने से रोकने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दाखिल की गई। हालांकि, सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ता से हाईकोर्ट जाने को कहा।Row over the nomination of MLAs in Jammu Kashmir and the legal debate news in hindi

आइये जानते हैं कि जम्मू कश्मीर विधानसभा में सदस्यों के मनोनयन का मुद्दा क्या है? पांच सदस्यों का मनोनयन क्यों किया गया है? कौन होते हैं नामांकित सदस्य और इनकी भूमिका क्या होती है? इस पर विवाद क्या हो रहा है? भाजपा क्या कह रही है? मामला अदालत पहुंच गया है, वहां क्या हुआ?

जम्मू कश्मीर विधानसभा में सदस्यों के मनोनयन का मुद्दा क्या है? 

जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 में जिक्र है कि जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल पांच विधायकों को नामित कर सकते हैं। पहले तो यह संख्या दो ही थी लेकिन एक संशोधन के जरिए इसे बढ़कर पांच कर दिया गया। अभी सदस्यों के नामांकन की कहानी जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के बाद हुई। दरअसल, 5 अक्तूबर को एग्जिट पोल आए थे जिसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन को बढ़त के साथ त्रिशंकु विधानसभा के अनुमान जताए गए। 8 अक्तूबर को जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे आते कि इससे पहले उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के पांच सदस्यों को विधानसभा में मनोनीत करने के अधिकार की चर्चा होने लगी।

इस नामांकन प्रक्रिया के नतीजों के बारे में विपक्षी पार्टियों ने चिंता जताई। इसके के साथ ही यह प्रश्न उठने लगा कि कि इन नियुक्त सदस्यों की क्या भूमिका होगी और उनके चयन से जुड़ा कानूनी ढांचा क्या होगा।

नामांकित सदस्य कौन होंगे?
जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 में जिक्र किया गया है कि उपराज्यपाल महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने के लिए विधानसभा में दो सदस्यों को नामित कर सकते हैं। एलजी यह अधिकार उस स्थिति में इस्तेमाल करेंगे यदि उनकी राय में महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। हालांकि, मई 2022 में परिसीमन के बाद परिसीमन पैनल ने सिफारिश की कि विधानसभा में पांच सदस्यों को नामित किया जाए। इस सिफारिश के अनुसार, 2023 में अधिनियम में और संशोधन किया गया। संशोधन के बाद अब उपराज्यपाल के पास विधानसभा में तीन और सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार है। बदलाव के तहत सदन में दो सीटें महिलाओं के लिए, दो कश्मीरी पंडितों के लिए और एक पाकिस्तान के कब्जे वाले (पीओके) शरणार्थियों के लिए आरक्षित हैं।
पांच सदस्यों के नामांकन से क्या बदलेगा?
उपराज्यपाल के पास केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभा में पांच सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार है। अगर पांच सदस्यों को मनोनीत किया जाता है, तो विधानसभा की संख्या 95 हो जाएगी। इससे सरकार बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा 48 सीटों तक बढ़ जाएगा। पांच सदस्यों के नामांकन न होने की स्थिति में बहुमत का आंकड़ा 46 होगा। हाल ही में जम्मू-कश्मीर की 90 सीटों के लिए हुए चुनावों में नेकां-कांग्रेस गठबंधन ने 48 सीटें जीतीं। वहीं एक-एक सीट के साथ आप और माकपा और पांच निर्दलीय चुने गए सदस्यों ने भी सरकार को समर्थन पत्र सौंपा है। इस तरह से बहुमत का आंकड़ा 48 होने पर भी सरकार के पास इससे अधिक 55 विधायकों का समर्थन है।
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क्या एलजी सदस्यों को मनोनीत कर सकते हैं?
कानूनी विशेषज्ञों की इस बात पर अलग-अलग राय है कि क्या एलजी सरकार गठन के समय या बाद में मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर पांच विधायकों को नामित कर सकते हैं। सदस्यों के मनोनयन से जुड़े मसले को समझने के लिए अमर उजाला ने सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता विराग गुप्ता से बात की। विराग कहते हैं कि पांच सदस्यों का नामांकन कब और कैसे हो और उनके अधिकार क्या हों? इस बारे में कानूनी विवाद है। एक पक्ष का यह मानना है कि केन्द्रशासित प्रदेश में मनोनयन के पूरे अधिकार हैं। इन सदस्यों की नई सरकार के गठन और विधानसभा के बहुमत निर्धारण में पूरी भूमिका हो सकती है। जबकि इसके विरोध में यह तर्क है कि नई सरकार के गठन या विधानसभा में बहुमत साबित करने में नामांकित सदस्यों की भूमिका नहीं हो सकती। उनके अनुसार सरकार की अनुशंसा के अनुसार ही उपराज्यपाल को नये सदस्यों का मनोनयन करना चाहिए। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सुनवाई करने से इंकार करते हुए याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट जाने की सलाह दी। महाराष्ट्र में पूर्ण राज्य का दर्जा है। लेकिन वहां पर भी राज्यपाल और सरकार के बीच नामांकन के बारे में विवाद हुए थे। इसलिए जम्मू-कश्मीर के केन्द्रशासित प्रदेश में ऐसे किसी विवाद पर अदालत को नये सिरे से फैसला करना होगा।

इसके कानूनी पहलुओं पर जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता हरि चंद जलमेरिया ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से कहा कि जम्मू-कश्मीर में पहली बार एक दशक के लंबे अंतराल के बाद नई सरकार के गठन में पांच मनोनीत विधायकों की अहम भूमिका होगी। रिपोर्टों के अनुसार, एलजी गृह मंत्रालय की सलाह के आधार पर इन सदस्यों को मनोनीत करेंगे।

वहीं सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे ने पीटीआई से बताया कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 (जिसे 2023 में संशोधित किया गया था) इस मुद्दे पर अस्पष्ट है कि मनोनीत विधायकों की सरकार गठन में कोई भूमिका होगी या नहीं।

सदस्यों के नामांकन की यह व्यवस्था और भी कहीं है?
केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी में भी सदन में सदस्यों का मनोनयन होता है। यहां की विधानसभा की सदस्य संख्या 33 है, जिसमें 30 निर्वाचित विधायक और केंद्र सरकार द्वारा मनोनीत तीन विधायक शामिल हैं।

नामित सदस्यों की भूमिका क्या होती है, क्या वे मतदान कर सकते हैं?
यह मुद्दा 2018 में उस वक्त भी उठा था जब भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने पुडुचेरी विधानसभा के लिए पार्टी के तीन सदस्यों को मनोनीत किया था। इस फैसले को मद्रास उच्च न्यायालय में इस तर्क के साथ चुनौती दी गई कि केंद्र शासित प्रदेश की सरकार से परामर्श नहीं किया गया था। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने नामांकन प्रक्रिया में कोई कानूनी उल्लंघन नहीं पाते हुए केंद्र के फैसले को बरकरार रखा। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा जिसने दिसंबर 2018 में दो अहम मुद्दों को सुलझाया।
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कोर्ट में अभी इस मुद्दे पर क्या हुआ है?
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पांच विधायकों को मनोनीत करने के जम्मू-कश्मीर के एलजी के प्रस्तावित कदम के खिलाफ याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। हालांकि, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने याचिकाकर्ता को उचित राहत के लिए उच्च न्यायालय जाने की छूट दी। जस्टिस खन्ना ने याचिकाकर्ता को कहा, ‘पहले हाईकोर्ट जाना चाहिए, क्योंकि कई बार सुप्रीम कोर्ट ने सीधे फैसला सुनाया है, लेकिन कुछ मुद्दे छूट गए हैं। अगर वे कुछ करते हैं, अगर हाईकोर्ट आपको स्थगन नहीं देता है, तो आप यहां आ सकते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि 1963 के केंद्रशासित प्रदेश अधिनियम के तहत, केंद्र पुडुचेरी विधानसभा में विधायकों को नामित करते समय केंद्रशासित प्रदेश सरकार से परामर्श करने के लिए बाध्य नहीं है। वहीं न्यायालय ने यह भी फैसला सुनाया कि एक ही कानून के तहत मनोनीत और निर्वाचित विधायकों के बीच कोई अंतर नहीं है। मनोनीत सदस्यों को सभी मामलों में समान मतदान का अधिकार प्राप्त है, जिसमें विश्वास मत, अविश्वास प्रस्ताव और बजट जैसे अहम फैसले शामिल हैं।

जम्मू कश्मीर में सदस्यों के मनोनयन पर क्या विवाद है?
नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि एलजी को इस प्रक्रिया से दूर रहना चाहिए। लोगों को नामित करना और उसे एलजी के पास भेजना सरकार का काम है। यह सामान्य प्रक्रिया है।

जम्मू कश्मीर कांग्रेस के अध्यक्ष तारिक हामिद कर्रा ने कहा कि इस तरह का कोई भी कदम लोकतंत्र की मूल अवधारणा के विपरीत और लोगों के जनादेश को हराने के बराबर होगा।

वहीं जम्मू-कश्मीर भाजपा प्रमुख रविन्द्र रैना ने कहा कि उपराज्यपाल द्वारा पांच विधायकों का नामांकन पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार है।

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कोर्ट में अभी इस मुद्दे पर क्या हुआ है?
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पांच विधायकों को मनोनीत करने के जम्मू-कश्मीर के एलजी के प्रस्तावित कदम के खिलाफ याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। हालांकि, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने याचिकाकर्ता को उचित राहत के लिए उच्च न्यायालय जाने की छूट दी। जस्टिस खन्ना ने याचिकाकर्ता को कहा, ‘पहले हाईकोर्ट जाना चाहिए, क्योंकि कई बार सुप्रीम कोर्ट ने सीधे फैसला सुनाया है, लेकिन कुछ मुद्दे छूट गए हैं। अगर वे कुछ करते हैं, अगर हाईकोर्ट आपको स्थगन नहीं देता है, तो आप यहां आ सकते हैं।

 

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