मां की अंतिम विदाई की पूजा के 2 घंटे बाद बेटे ने भी आखिरी सांस ली। मां का 13 दिन पहले निधन हो गया। बेटे ने रीति-रिवाज से तेरहवीं का कार्यक्रम किया। इसके बाद जब सुबह 5 बजे सोने गए पति को पत्नी उठाने पहुंची तो बोला- 5 मिनट और सो लूं। इसके बाद फिर नहीं उठा।
जो रिश्तेदार मां की तेरहवीं के कार्यक्रम में शामिल होने आए थे, वे बेटे को आखिरी विदाई देकर अपने घर रवाना हुए। ग्रामीणों का कहना है कि वह अक्सर कहा करता था- हमेशा मां के साथ रहूंगा। उनके बीच प्रेम का अटूट रिश्ता था।
मां-बेटे के प्रेम की यह दास्तां है, राजगढ़ शहर से 13 किमी दूर बड़बेली गांव की। परिवारवालों ने बताया कि भूलीबाई के तीन बच्चों में सबसे बड़ा लक्ष्मीनारायण दांगी (60), रामलाल दांगी (55) और छोटा प्रेमनारायण दांगी (43) है। उनकी तीन बेटियां भी हैं।
छोटा बेटा मां के सबसे करीब था
2008 भूलीबाई के लिए बहुत ही तकलीफ देह साल था। उनके पति फूलसिंह दांगी की मौत से वे टूट सी गई थीं। बच्चों का तो सहारा था, लेकिन बुढ़ापे में पति के जाने का गम था।
मां को इस प्रकार से देखकर बेटे दुखी थे। सबसे ज्यादा मां के करीब रहने वाले छोटे बेटे प्रेमनारायण ने ऐसे में मां को ढांढस बंधाया। उसने कहा- मां आप चिंता मत करो पापा चले गए, लेकिन हम तो हैं। मां जब तक जीएंगे साथ रहेंगे।
प्रेमनारायण की 2008 में कही इस बात को उनके घरवाले आज उनके जाने के बाद याद कर रहे हैं। कहते हैं – वे अपनी मां से इतना प्रेम करते थे कि उनके जाने का सदमा बर्दाश्त नहीं कर सके।
बेटा बोला- मां ने दूसरी बार उठाया तो पापा नहीं उठे
प्रेमनारायण के इकलौते बेटे भगवान सिंह दांगी ने भोपाल से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। उन्होंने बताया कि 27 जुलाई को दादी भूलीबाई दांगी (90) काे अचानक से घबराहट हुई और तेज पसीना आया। कुछ देर बाद उनका निधन हो गया।
8 अगस्त को तेरहवीं थी। दादी की माैत के बाद हमने सामाजिक रीति-रिवाज से सभी काम किए। तेरहवीं के कार्यक्रम के चलते पापा प्रेमनारायण बहुत व्यस्त थे। कार्यक्रम में शामिल होने दूर-दूर से रिश्तेदार आए हुए थे।
प्रेमनारायण के बेटे ने बताया तेरहवीं के बाद क्या हुआ…
सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक तेरहवीं का कार्यक्रम चला। इसके बाद दूर से आए रिश्तेदार वापस लौट गए। हमारे समाज में विदाई की पूजा होती है, इस कारण बहन-बेटियों समेत पास वाले रिश्तेदार विदाई के लिए रुक गए।
8-9 अगस्त की दरमियानी रात करीब 3 बजे विदाई की पूजा शुरू हुई, जो 4 बजे तक चली। दादी को सभी ने आखिरी विदाई दी और फिर सोने चले गए। पापा प्रेमनारायण भी सुबह करीब 5 बजे कमरे में जाकर लेट गए। कुछ जरूरी काम होने से मम्मी सोरम बाई सुबह करीब 6 बजे उन्हें उठाने कमरे में पहुंचीं।