सरोज रात्रि. जिन बच्चों का भविष्य बनानेकी जिम्मेदारी सरकार ने शिक्षकों को दे रखी है यदि वही लापरवाही बरतते हैं तो बच्चों का मुस्तकबिल बर्बाद हो जाता है। आदिवासी क्षेत्र की अधिकांश शालाओं का तो कोई माई बाप ही नहीं है। शिक्षक का जब मन होता है आते हैं पढ़ाये तो पढ़ाये वरना जब दिल ने कहा घर चलो, वापस लौट जाते हैं। बच्चे भी पढ़ाई के बोझ से खुद को मुक्त मानते हुए शाला परिसर में खेलते हैं और घर लौट जाते हैं. आदिवासी जिले कोरबा के करतला ब्लॉक के कई स्कूल भगवान भरोसे चल रहे हैं ।आज प्राथमिक शाला माझी पारा का हमारी टीम ने दौरा किया तो पाया की सुबह के 10:30 बज रहे हैं बच्चे शाला परिसर में खेल रहे हैं गुरु जी का पता नहीं है
बच्चों ने बताया कि उन्हें 9:00 बजे स्कूल आने के लिए कहा जाता है लेकिन वे 9:30 बजे पहुंचते हैं । गुरुजन 10:30 बजे तक आते हैं। कभी-कभी तो आते ही नहीं।चाबी सफाई कर्मी से मिल जाती है ।बच्चे ताला खोलकर बस्ता अंदर रखते हैं और फिर परिसर में खेलने में मसरूफ हो जाते हैं
समय पर स्कूल नहीं पहुंचने वाले शाला के प्रिंसिपल राजाराम से जब मोबाइल के जरिए संपर्क किया गया तो उन्होंने बताया कि वह उर्गा थाने में है और संकुल प्रभारी को बात कर वे छुट्टी पर हैं। शाला के दूसरे शिक्षक इंदर इन दोनों प्रशिक्षण पर गए हुए हैं. प्रिंसिपल और शिक्षक की शाला में उपस्थित न होने का जिक्र करते हुए जब करतला विकासखंड शिक्षा अधिकारी संदीप पांडे से चर्चा की गई तो उन्होंने बताया की दोनों शिक्षकों को नोटिस जारी की जाएगी. यह दशा सिर्फ प्राथमिक शाला माझीपारा की ही नहीं है बल्कि ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश स्कूल ऐसी ही दशा से गुजरते हैं। यहां शिक्षारत बच्चे साधारण परिवारों से आते हैं। माता-पिता अशिक्षित हैं इसलिए वह भी लापरवाह शिक्षकों के सामने खड़े होकर नाराजगी प्रकट करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग को इस दिशा में ध्यान देना चाहिए