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मणिपुर को 14 महीने से शांति का इंतजार:मैतई महिलाएं रातभर जागकर गांव की सुरक्षा कर रहीं, कुकी इलाकों में सरकारी काम अटके

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PM नरेंद्र मोदी ने बुधवार को राज्यसभा में कहा कि मणिपुर में हिंसा लगातार कम हो रही है और राज्य में पूरी तरह शांति स्थापित करने की कोशिश की जा रही है। वहीं, मणिपुर के लोग पिछले 14 महीनों से शांति बहाल होने का इंतजार कर रहा है।

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पूरा मणिपुर राज्य मैतेई और कुकी के दो हिस्सों में बंट गया है। कई मैतई महिलाएं रातभर जाकर अपने गावों की रक्षा करते नजर आईं, तो कुकी बहुल इलाकों में सरकार कामकाज ठप हो गया है।

मैतई महिलाएं 1 साल से रात भर जागकर गांव की सुरक्षा कर रहीं
मणिपुर के 5 जिले इंफाल पश्चिम, इंफाल पूर्व, बिष्णुपुर, काकचिंग और थौबल घाटी क्षेत्र में आते हैं। इन पांचों जिलों के सीमाई क्षेत्र अभी भी असुरक्षित हैं। इंफाल घाटी में रहने वाले लोगों को इंफाल पश्चिम के जिले फेयेंग और सेकमाई क्षेत्र, इंफाल पूर्व जिले के यिंगांगपोकपी क्षेत्र से आगे जाने पर प्रतिबंध है।

इसी तरह बिष्णुपुर जिले में फौगाकचाओ इखाई और थौबल जिले में येरीपोक क्षेत्र से आगे जाने की मनाही है। इनके आगे कुकी क्षेत्र शुरू हो जाता है। यहां अक्सर लोगों पर छिटपुट हमले होते रहते हैं। जब भास्कर टीम इंफाल पश्चिम जिले के फेयेंग गांव पहुंची तो देखा कि सड़क के किनारे बने कैंप में बैठी महिलाएं गांव की सुरक्षा कर रही थीं। मैतेई समुदाय के महिला संगठन मेइरा पैबेई की महिलाएं पिछले एक साल से रातभर जागकर गांव की सुरक्षा करती हैं।

मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद से कुकी बहुल पहाड़ी जिलों का प्रशासनिक कामकाज चरमरा गया है। राज्य के 16 जिलों में से 5 पहाड़ी जिलों (चुराचांदपुर, चंदेल, कांगपोकपी, टेंगनौपाल और सेनापति) में कुकी और जो जनजाति का दबदबा है। चुराचांदपुर राज्य का सबसे बड़ा जिला है। जो राज्य के क्षेत्रफल का 20.5% है।

हिंसा के कारण मैतेई समुदाय के सभी सरकारी कर्मचारी पहाड़ी जिलों को छोड़कर राजधानी इंफाल और उसके आसपास के मैतेई बहुल इलाकों में चले गए। वहीं, इंफाल घाटी से कुकी जनजाति के सरकारी कर्मचारी अपने पहाड़ी इलाकों में आ गए है।

कुकी बहुल इलाकों में बिल भरने जैसे काम ठप
कुकी इलाकों में कर्मचारियों की कमी के कारण पहाड़ी जिलों में सरकारी राशन से लेकर जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र बनाने और बिजली का बिल भरने तक या फिर परिवहन और शिक्षा विभाग से जुड़े कामकाज ठप पड़ गए थे।

कुकी जनजाति बहुल चुराचांदपुर के जिला अस्पताल में मरीजों से घिरे एक एक डॉक्टर ने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि पिछले साल जब 3 मई को हिंसा शुरू हुई थी तभी से अस्पताल काम गड़बड़ा गया है। बीच-बीच में राज्य सरकार हेलिकॉप्टर के जरिए दवाइयां भेजती है, लेकिन मरीजों के हिसाब से वो पर्याप्त नहीं है।

हिंसा के बाद से ही कुकी बहुल पहाड़ी जिलों में ‘स्व-शासन’ का मुद्दा उठाया जा रहा है। मणिपुर में कुकी-जो का प्रतिनिधित्व करने वाले इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) के नेताओं का कहना है कि हमें मैतेई मणिपुर सरकार से कोई उम्मीद नहीं है।

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