acn18.com / आज ‘वर्ल्ड पिकनिक डे’ है। यानी परिवार और दोस्तों के साथ घूमने-फिरने, खाने-पीने और मौज-मस्ती का दिन। ऐसे में छत्तीसगढ़ का बस्तर और सरगुजा ‘Full of Surprises’ के साथ आपका स्वागत करने के लिए तैयार है। यहां ट्रैकिंग, नाइट कैंपिंग के साथ ही नेचर और वाटरफॉल का मजा भी ले सकेंगे।
बात पहले बस्तर की। नक्सलियों के नाम पर पहचाना जाने वाला बस्तर अपने अंदर हसीन वादियों, खूबसूरत जलप्रपात और ऐतिहासिक मंदिरों को अपने अंदर समेटे हुए है। यहां चित्रकोट और तीरथगढ़ वॉटरफाल हैं, तो ढोलकल शिखर की ट्रैकिंग और यहां विराजे गणपति के दर्शन भी हैं।
ऐसे ही समुद्र तल से 1085 मीटर की ऊंचाई पर बसा छत्तीसगढ़ का शिमला कहा जाने वाला ‘मैनपाट’ है। प्राकृतिक रूप से मैनपाट के पहाड़ और वादियां लोगों को रोमांचित कर देती हैं।
जानिए मैनपाट के साथ ही बस्तर के ऐसे ही 12 खूबसूरत पिकनिक स्पॉट…
- मैनपाट (सरगुजा) :
मैनपाट में झरने और कई दर्शनीय स्थलों के साथ ही टाउ की फसल लोगों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है। तिब्बती समुदाय के कैंप भी देखने लायक हैं। सात अलग-अलग तिब्बती कैंपों में शांति के ध्वज यहां हवा में लहराते हैं जो अलग से सुकून देते हैं। बौद्ध मठ, मंदिर भी यहां दर्शन के लिए हमेशा खुले रहते हैं।
यहां भी घूम सकते हैं :
- उल्टा पानी : यहां गुरुत्वाकर्षण का नियम फेल होता दिखता है। सड़क पर चुंबकीय प्रभाव के कारण चार पहिया वाहन और पानी ढाल पर लुढ़कने के बजाए ऊपर की ओर चलने लगते हैं।
- दलदली : दलदली में छोटे बच्चों से लेकर हर वर्ग के लोग उछल-कूद करते हैं। यहां की धरती डोलती है। झूले की तरह धरती हिलने लगती है। साल के घने जंगलों के बीच यह दलदली मैनपाट के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है।
- इसके अलावा टाइगर प्वाइंट, फिश प्वाइंट, परपटिया, तिब्बती मठ मंदिर, तिब्बती कैंप, मेहता प्वाइंट, टांगीनाथ का मंदिर प्रमुख पर्यटन केंद्र है।
मैनपाट सड़क मार्ग से पहुंचने के लिए इस घाटी से वाहनों को गुजरना होता है।
ऐसे पहुंचे मैनपाट
रायपुर से इसकी दूरी 390 किमी है और अंबिकापुर से करीब 55 किलोमीटर है। नजदीकी रेलवे स्टेशन अंबिकापुर है। मैनपाट जाने के लिए बस, टैक्सी की सुविधा आसानी से मिल जाएगी। अंबिकापुर-रायगढ़ राजमार्ग से होते हुए मैनपाट आसानी से पहुंचा जा सकता है।
- चित्रकोट जगदलपुर) :
बस्तर के संभागीय मुख्यालय जगदलपुर से महज 39 किमी की दूरी पर चित्रकोट जल प्रपात स्थित है। इस जल प्रपात का आकार घोड़े की नाल की तरह है। यहां इंद्रावती नदी का पानी लगभग 90 फीट की ऊंचाई से नीचे गिरता है।बारिश के दिनों में 7 से ज्यादा धाराएं नीचे गिरती हैं। ठंड और गर्मी के समय 2 से 3 धाराएं गिरती हैं।
इस वॉटरफाल के नीचे एक छोटी सी गुफा में चट्टानों के बीच शिवलिंग स्थित है। जल प्रपात से नीचे गिरने वाले पानी से सालभर शिवलिंग का जलाभिषेक होता है। कहा जाता है कि नाविक यहां भोलेनाथ की पूजा अर्चना करते हैं। हालांकि बारिश के दिनों में शिवलिंग तक पहुंचा नहीं जा सकता। गर्मी और ठंड के मौसम में पर्यटकों के कहने पर ही नाविक शिवलिंग तक पर्यटकों को लेकर जाते हैं।
ऐसे पहुंचते सकते हैं पर्यटक
रायपुर से जगदलपुर और हैदराबाद से जगदलपुर तक हवाई सेवा भी शुरू हो चुकी है। इसके अलावा किरंदुल-विशाखापटनम रेल मार्ग, सड़क मार्ग से भी पर्यटक पहुंच सकते हैं। फिर यहां से करीब 39 किमी का सफर तय कर जल प्रपात तक जा सकते हैं। चित्रकोट तक सड़कों का जाल बिछा हुआ है। रायपुर, ओडिशा, आंध्र प्रदेश से लेकर देश के किसी भी कोने से पर्यटक पहुंच सकते हैं।
- तीरथगढ़ (जगदलपुर) :
तीरथगढ़ जल प्रपात बस्तर के कांगेर घाटी नेशनल पार्क में स्थित है। जगदलपुर से इसकी दूरी लगभग 40 किमी है। इस जल प्रपात की खास बात है कि इसमें पानी सीढ़ीनुमा आकार में नीचे गिरता है। ठंड और गर्मी के समय पानी का रंग सफेद मोतियों की तरह दिखता है। पर्यटक रायपुर और हैदराबाद से जगदलपुर तक हवाई और बस सेवा समेत सड़क मार्ग से आसानी से पहुंच सकते हैं। फिर जगदलपुर से सड़क मार्ग से केशलूर होते हुए तीरथगढ़ प्रपात तक पहुंचा जा सकता है।
मट्टी मरका को बीजापुर जिले का गोवा भी कहा जाता है।
- मट्टी मरका (बीजापुर) :
यह स्पॉट बीजापुर जिले के भोपालपट्नम ब्लॉक में है। भोपालपट्नम से लगभग 20 किमी दूर मट्टीमरका गांव में इंद्रावती नदी किनारे दूर तक बिछी सुनहरी रेत और पत्थरों के बीच से कल-कल बहती इंद्रावती नदी का सौंदर्य देखते ही बनता है। नदी छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की सीमा बनाते हुए बहती है। मट्टी मरका को बीजापुर जिले का गोवा भी कहा जाता है। ट्रैकिंग के लिए जगह बेहद खूबसूरत है।
नीलम सरई जलधारा हाल ही के कुछ साल पहले सुर्खियों में आया है।
- नीलम सरई जल प्रपात (बीजापुर) :
बीजापुर जिले के उसूर ब्लॉक में स्थित नीलम सरई जलधारा हाल ही के कुछ साल पहले सुर्खियों में आया है। स्थानीय युवाओं की टीम ने इस नीलम सरई जल प्रपात को लोगों के सामने लाया। उसूर के सोढ़ी पारा से लगभग 7 किमी दूर तीन पहाड़ियों की चढ़ाई को पार कर यहां पहुंचा जा सकता है। नीलम सरई जलप्रपात तक का सफर ट्रैकिंग के लिए ही माना जाता है। बस्तर की हसीन वादियों के बीच ट्रैकिंग करने वालों के लिए यहां का सफर रोमांच भरा होता है।
नंबी बस्तर की सबसे ऊंची जलधारा है।
- नंबी जल प्रपात (बीजापुर) :
बीजापुर जिले के उसूर ग्राम से 8 किमी पूर्व की ओर नड़पल्ली ग्राम को पार करने के बाद नंबी ग्राम आता है। इस गांव से तीन किमी जंगल की ओर दक्षिण दिशा में पहाड़ पर बहुत ही ऊंचा जलप्रपात है। इसे नीचे से देखने पर एक पतली जलधारा बहने के समान दिखाई देती है। इसलिए इसे नंबी जलधारा कहते हैं। लगभग 300 फीट की ऊंचाई से गिरने वाले इस जलधारा को देखकर यह कहा जाता है कि यह बस्तर की सबसे ऊंची जलधारा है।
दोबे को पत्थरों का परिवार या फिर पत्थरों का गांव भी कहा जाता है।
- पत्थरों का परिवार दोबे (बीजापुर) :
नीलम सरई से मात्र तीन किमी की दूरी पर एक बेहद शानदार पर्यटन स्थल दोबे स्थित है। दोबे को पत्थरों का परिवार या फिर पत्थरों का गांव भी कहा जाता है। यहां चारों तरफ पत्थरों से बनी हुई अद्भुत कलाकृतियां देखी जा सकती हैं। बड़े-बड़े पत्थरों से बनी हुई कलाकृतियां किसी किले के समान लगती है।
अमूमन शिकार के समय ग्रामीण यहां पहुंचते हैं। चट्टानों की खोह रात गुजारने के लिए बेहद सुकून दायक जगह मानी जाती है। सालभर पहले इसी इलाके की खोज स्थानीय युवाओं ने की थी। ये जगह भी ट्रैकिंग और पिकनिक के लिए खूबसूरत है।
बीजापुर में लंकापल्ली जल प्रपात है।
- लंका पल्ली जल प्रपात (बीजापुर) :
बीजापुर जिला मुख्यालय से 33 किमी दूर दक्षिण दिशा की ओर आवापल्ली गांव है। यहां से पश्चिम दिशा में लगभग 15 किमी पर लंकापल्ली गांव बसा हुआ है। जो यहां साल के 12 महीने निरंतर बहने वाले जलप्रपात के लिए प्रसिद्ध है। प्रकृति की गोद में शांत एवं स्वच्छंद रूप से अविरल बहते इस प्रपात को लोग गोंडी बोली में बोक्ता बोलते हैं। नाइट कैंपिंग और ट्रैकिंग के लिए यह एक शानदार जगह है।
गोदावरी नदी पर इंचमपल्ली बांध परियोजना अपने आप में ऐतिहासिक है।
- इंचमपल्ली बांध (बीजापुर) :
तारलागुड़ा क्षेत्र के चंदूर-दुधेड़ा गांव की सीमा से लगे गोदावरी नदी पर इंचमपल्ली बांध परियोजना अपने आप में ऐतिहासिक है। इसका सर्वेक्षण एवं निर्माण कार्य सन 1983 में प्रारंभ होना बताया जाता है। गोदावरी नदी में छत्तीसगढ़ की सीमा से प्रारंभ किए गए इस बांध में लगभग 45 से 50 फीट ऊंची एवं 100 से 200 फीट लंबी, 10 से 12 फीट चौड़ी तीन दीवारें बनी हैं। तीनों दीवारों को जोड़ती लगभग 12 से 15 फीट ऊंची एक और दीवार भी बनी है। यह इलाका हिस्टॉरिकल प्लेस की तरह नजर आता है।
दंतेवाड़ा जिले के झिरका के जंगल में खूबसूरत झारालावा जल प्रपात स्थित है।
- झारालावा जल प्रताप (दंतेवाड़ा) :
दंतेवाड़ा जिले के झिरका के जंगल में खूबसूरत झारालावा जल प्रपात स्थित है। जानकार बताते हैं कि यह बस्तर का पहला ऐसा जल प्रपात है, जिसके पास जाने से इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस काम करना बंद कर देती है। इसकी मुख्य वजह यहां स्थित चट्टानों की चुम्बकीय शक्ति है।
इस जल प्रपात तक पहुंचने के लिए कोई सुगम रास्ता भी नहीं है। कुछ दूरी बाइक से फिर कई किमी तक पैदल चलना पड़ता है। बीच मे एक-दो छोटे बरसाती नाले भी पड़ते है। इस प्रपात से सालभर पानी नीचे गिरता है।
चित्रकोट जल प्रपात से 25 किमी की दूरी पर मिचनार की खूबसूरत पहाड़ी स्थित है।
- मिचनार हिल टॉप (जगदलपुर) :
जगदलपुर से 40 तो वहीं चित्रकोट जल प्रपात से 25 किमी की दूरी पर मिचनार की खूबसूरत पहाड़ी स्थित है। हाल ही में इस जगह के बारे में लोगों पता चला था। हालांकि यह भी एक तरह की ट्रैकिंग प्लेस है। खड़ी पहाड़ में चढ़ कर टॉप में पहुंचा जाता है। जिसके बाद गहरी खाई और यहां का खूबसूरत नजारा देखने योग्य होता है।
अबूझमाड़ में खूबसूरत हांदावाड़ा जल प्रपात स्थित है।
- हांदावाड़ा जल प्रपात (दंतेवाड़ा) :
दंतेवाड़ा-नारायणपुर जिले की सीमा पर अबूझमाड़ में खूबसूरत हांदावाड़ा जल प्रपात स्थित है। साल 2004 के बाद हांदावाड़ा जलप्रपात के बारे में लोगों को जानकारी लगी थी, लेकिन यहां पहुंचने की राह आसान नहीं है। इंद्रावती नदी के पाहुरनार घाट में अब पुल निर्माण का काम हो चुका है, इसलिए पर्यटकों की पहली चुनौती यहां खत्म हो गई है।
हांदावाड़ा जल प्रपात तक पहुंचने पक्की सड़क भी नहीं है। बारिश के दिनों में यह जल प्रपात अपनी अलौकिक छटा बिखेरता है। बाहुबली मूवी की शूटिंग की अफवाह उड़ी थी, इसलिए इसे बाहुबली जल प्रपात के नाम से भी जाना जाता है।
ढोलकल शिखर पर करीब ढाई से तीन हजार फीट की ऊंचाई पर गणपति विराजे हैं।
- ढोलकल शिखर (दंतेवाड़ा) :
दंतेवाड़ा जिले के ढोलकल शिखर पर करीब ढाई से तीन हजार फीट की ऊंचाई पर गणपति विराजे हैं। गणपति जी से लोगों की आस्था जुड़ी है। साथ ही कई किवदंतियां भी हैं। बताया जाता है कि भगवान परशुराम और गणेश जी का यहां युद्ध हुआ था। इसके बाद यहां एक दंत वाले गणेश जी की मूर्ति स्थापित की गई थी।
गांव के बुजुर्गों और पुरानी कहानी के अनुसार यह जानकारी सामने आई थी। वर्तमान में यहां हर साल ढोलकल महोत्सव का भी आयोजन किया जाता है। लोगों का मानना है कि गणेश जी क्षेत्र की रक्षा करते हैं।