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वट सावित्री व्रत आज:सतयुग में किया जा रहा है ये व्रत, इस व्रत के कारण यमराज ने लौटाए थे सावित्री के पति के प्राण

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पति की लंबी उम्र के लिए वट सावित्री व्रत का विधान ग्रंथों में बताया गया है। ये व्रत हर साल देश के कुछ हिस्सों में ज्येष्ठ महीने की अमावस्या तो कुछ जगह पूर्णिमा पर किया जाता है। आज (6 जून, गुरुवार) अमावस्या पर ये व्रत किया जा रहा है। इस व्रत का जिक्र स्कंद पुराण में किया गया है।

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वट सावित्री व्रत की पूजन विधि
सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ के जल से स्नान करें।
भगवान शिव-पार्वती की पूजा कर सावित्री और वट वृक्ष की पूजा का संकल्प लें।
पूजा और संकल्प के बाद नैवेद्य बनाएं और मौसमी फल जुटाएं।
पूजा सामग्री के साथ बरगद के पेड़ के नीचे पूजा शुरू करें।
पूजा में मिट्‌टी का शिवलिंग बनाएं। पूजा की सुपारी को गौरी और गणेश मानकर पूजा करनी चाहिए।
इनके साथ ही सावित्री की पूजा भी करें।
पूजा होने के बाद बरगद में 1 लोटा जल सींचे।
पूजा के बाद अपनी मनोकामना ध्यान में रखते हुए श्रद्धा अनुसार पेड़ की 11, 21 या 108 परिक्रमा करें।
परिक्रमा करते हुए कच्चा सूत भी बरगद पर लपेटना चाहिए।

यमराज ने वापस किए थे सत्यवान के प्राण
इस व्रत को रखने से पति पर आए संकट चले जाते हैं और आयु लंबी हो जाती है। यही नहीं अगर दांपत्य जीवन में कोई परेशानी चल रही हो तो वह भी इस व्रत के प्रताप से दूर हो जाते हैं।

सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करते हुए इस दिन वट यानी कि बरगद के पेड़ के नीचे पूजा-अर्चना करती हैं। इस दिन सावित्री और सत्यवान की कथा सुनने का विधान है।

मान्यता है कि इस कथा को सुनने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री मृत्यु के देवता यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले आई थी।

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