देश में सैकड़ो हैं किसान संगठन , सबका झंडा व डंडा अलग-अलग पर एजेंडा एक!
वर्तमान सरकार वादा करने के बावजूद आगामी चुनाव के पूर्व किसानों को एसपी गारंटी कानून का वाजिब हक देने के लिए तैयार नहीं दिखती। इन हालातो को देखते हुए किसान संगठनों ने 13 मार्च को दिल्ली में एक आपात बैठक बुलाई है। इस बैठक में किसान संगठनों के साथ ही मजदूर संगठनों को भी बुलाया गया है। यह कहना था किसान संगठनों की आपातकालीन बैठक में भाग लेने जा रहे ‘अखिल भारतीय किसान महासंघ’ (आईफा) की राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी का। आगे डॉ राजाराम ने यह भी बताया कि उन्हें भी आज ही आपातकालीन बैठक में शामिल होने का संदेश मिला है। चूंकि सवाल देशभर के किसानों का है, इसलिए वह भी इसमें शामिल होने जा रहे हैं। डॉ त्रिपाठी ने आगे कहा की आईफा देश के 45 बड़े किसान संगठनों का एक गैर राजनैतिक महासंघ है। हमने न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून के एक-सूत्रीय कार्यक्रम को लेकर सरदार वीएम सिंह की अगुवाई में गठित ‘राष्ट्रीय एमएसपी गारंटी किसान मोर्चा’ को भी पूरा समर्थन दिया है तथा एमएसपी एवं किसानों के जरूरी मुद्दों के लिए ईमानदारी से लड़ने वाले हर गैर राजनीतिक संगठन को हमारा पूरा समर्थन मिलेगा। उल्लेखनीय है कि डॉ.त्रिपाठी एमएसपी गारंटी किसान मोर्चा के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं। एसकेएम तथा अन्य आंदोलन रत किसान संगठनों के बारे में उन्होंने कहा कि किसान हित के लिए संघर्षरत सभी किसान व संगठन हमारे भाई हैं और हम सब साथ हैं। ध्यान रहे हमारा डंडा-झंडा अलग-अलग हो सकता है पर हम सब का मूल एजेंडा एक ही है,और वो है किसान-हित तथा देश-हित। मीटिंग के एजेंडे के बारे में उन्होंने कहा कि देखते हैं आगे क्या होता है। आईफा का स्पष्ट रूप से मानना है कि किसान मज़दूरों के विभिन्न ज्वलंत मुद्दों को लेकर एक समग्र साझे मोर्चे या समिति के द्वारा देशभर के समस्त कृषक, मजदूर संगठनों को जोड़कर विस्तृत चर्चा कर जरूरी समन्वय स्थापित करने हेतु तत्काल आवश्यक कदम उठाए जाएं। आवश्यकतानुसार राष्ट्रव्यापी आंदोलन की कार्ययोजना भी तैयार की जा सकती है। क्योंकि देश के सबसे बड़े 68% वोटर समुदाय ने यानि किसानों और गांवों ने अब तय कर लिया है कि अगला लोकसभा चुनाव अब किसानों के मुद्दे पर ही होगा। और *चाहे कोई नेता या कोई पार्टी कितनी भी मजबूत क्यों ना हो परंतु देश के बहुसंख्य मज़लूम किसानों का दमन करके, उनके साथ सतत पक्षपात करके, उन्हें हाशिए पर रखकर, उनके आंसुओं को नजरअंदाज करके, चुनावों में बिना धांधली बेईमानी किए सत्ता पर कभी नहीं पहुंच सकी।*