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बसंत पंचमी आज, जानें इस दिन का महत्व, पौराणिक कथा और पूजन विधि

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हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को देवी मां सरस्वती का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। ग्रंथों के अनुसार इस दिन देवी सरस्वती प्रकट हुई थीं। तब देवताओं ने देवी स्तुति की। स्तुति से वेदों की ऋचाएं बनीं और उनसे वसंत राग। इसलिए इस दिन को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस बार कल यानी 14 फरवरी , बुधवार को वसंत पंचमी का पर्व मनाया जाएगा। वसंत का सीधा सा अर्थ है सौन्दर्य, शब्द का सौन्दर्य, वाणी का सौंदर्य, प्रकृति का सौंदर्य ,प्रवृत्ति का सौंदर्य।   प्रकृति के आंचल में जब अनेकानेक पुष्प मुस्कारते हैं, जब कोयल की कूक कानों में मिठास घोलती है, जब पेड़ पुष्प अपना परिधान बदलते हैं और जब वाणी मधुरता का अमृतपान कराती है ,तो सुनते देखते ही पहला शब्द निकलता है वाह… अद्भुत… विलक्षण..  अनुपम । वास्तव में यही बसंत है तभी तो इसे रितुराज की संज्ञा दी गई है।  रितु विचिका में दो ऐसे मास हैं, जो हमारे मन को सीधे सीधे प्रभावित करते हैं, एक सावन और दूसरा बसंत। दोनो ही मास को साहित्य, समाज, समरसता, संगीत और सकारात्मकता से जोड़ा गया है। कालीदास से लेकर आज तक के अनेक रचनाकारों को ये मास आनंदित करते हैं ।

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बसंत के पर्व का विस्तार अधिक है क्योंकि इससे और भी बहुत से सकारात्मक तत्व जुड़े हैं । मां सरस्वती वाणी एवं ज्ञान की देवी है । ज्ञान को संसार में सभी चीजों से श्रेष्ठ कहा गया है, इस आधार पर देवी सरस्वती सभी से श्रेष्ठ हैं। कहा जाता है कि जहां सरस्वती का वास होता है वहां लक्ष्मी एवं काली माता भी विराजमान रहती हैं।  इसका प्रमाण है माता वैष्णो का दरबार जहॉ मां सरस्वती,मां लक्ष्मी,मां काली ये तीनों महाशक्तियां साथ में निवास करती हैं। जिस प्रकार माता दुर्गा की पूजा का नवरात्र में महत्व है उसी प्रकार वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन का महत्व है |सरस्वती पूजा के दिन यानी माघ शुक्ल पंचमी के दिन सभी शिक्षण संस्थानों में शिक्षक एवं छात्रगण सरस्वती माता की पूजा एवं अर्चना करते हैं। सरस्वती माता कला की भी देवी मानी जाती हैं अत: कला क्षेत्र से जुड़े लोग भी माता सरस्वती की विधिवत पूजा करते हैं।  छात्रगण सरस्वती माता के साथ-साथ पुस्तक, कापी एवं कलम की पूजा करते हैं। संगीतकार वाद्ययंत्रों की, चित्रकार अपनी तूलिका की पूजा करते हैं।

वंसत पंचमी पर पीले रंग का महत्व 
ग्रंथों के अनुसार वसंत पंचमी पर पीला रंग के उपयोग का महत्व है। क्योंकि इस पर्व के बाद शुरू होने वाली बसंत ऋतु में फसलें पकने लगती हैं और पीले फूल भी खिलने लगते हैं। इसलिए वसंत पंचमी पर्व पर पीले रंग के कपड़े और पीला भोजन करने का बहुत ही महत्व है। इस त्योहार पर पीले रंग का महत्व इसलिए बताया गया है क्योंकि बसंत का पीला रंग समृद्धि, ऊर्जा, प्रकाश और आशावाद का प्रतीक है। इसलिए इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनते हैं, व्यंजन बनाते हैं।
सादगी और निर्मलता को दर्शाता है पीला रंग 
हर रंग की अपनी खासियत है जो हमारे जीवन पर गहरा असर डालती है। हिन्दू धर्म में पीले रंग को शुभ माना गया है। पीला रंग शुद्ध और सात्विक प्रवृत्ति का प्रतीक माना जाता है। यह सादगी और निर्मलता को भी दर्शाता है। पीला रंग भारतीय परंपरा में शुभ का प्रतीक माना गया है।
आत्मा से जोड़ने वाला रंग 
फेंगशुई ने भी इसे आत्मिक रंग अर्थात आत्मा या अध्यात्म से जोड़ने वाला रंग बताया है। फेंगशुई के सिद्धांत ऊर्जा पर आधारित हैं। पीला रंग सूर्य के प्रकाश का है यानी यह ऊष्मा शक्ति का प्रतीक है। पीला रंग हमें तारतम्यता, संतुलन, पूर्णता और एकाग्रता प्रदान करता है।
सक्रिय होता है दिमाग 
मान्यता है कि यह रंग डिप्रेशन दूर करने में कारगर है। यह उत्साह बढ़ाता है और दिमाग सक्रिय करता है। नतीजतन दिमाग में उठने वाली तरंगें खुशी का अहसास कराती हैं। यह आत्मविश्वास में भी वृद्धि करता है। हम पीले परिधान पहनते हैं तो सूर्य की किरणें प्रत्यक्ष रूप स दिमाग पर असर डालती हैं।
बसंत पंचमी की पौराणिक कथा 
सृष्टि की रचना के समय ब्रह्माजी ने महसूस किया कि जीवों की सर्जन के बाद भी चारों ओर मौन छाया रहता है। उन्होंने विष्णुजी से अनुमति लेकर अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे पृथ्वी पर एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई। छह भुजाओं वाली इस शक्ति रूप स्त्री के एक हाथ में पुस्तक, दूसरे में पुष्प, तीसरे और चौथे हाथ में कमंडल और बाकी के दो हाथों में वीणा और माला थी। ब्रह्माजी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, चारों ओर ज्ञान और उत्सव का वातावरण फैल गया, वेदमंत्र गूंज उठे। ऋषियों की अंतःचेतना उन स्वरों को सुनकर झूम उठी। ज्ञान की जो लहरियां व्याप्त हुईं, उन्हें ऋषिचेतना ने संचित कर लिया।  तब से इसी दिन को बंसत पंचमी के रूप में मनाया जाता है।
वसंत पंचमी पर पूजन
माता शारदा के पूजन के लिये भी बसंत पंचमी का दिन विशेष शुभ रहता है।  इस दिन 2 से 10 वर्ष की कन्याओं को पीले-मीठे चावलों का भोजन कराया जाता है तथा उनकी पूजा की जाती है । मां शारदा और कन्याओं का पूजन करने के बाद पीले रंग के वस्त्र और आभूषण कुमारी कन्याओ, निर्धनों व विप्रों को देने से परिवार में ज्ञान, कला व सुख -शान्ति की वृ्द्धि होती है। इसके अतिरिक्त इस दिन पीले फूलों से शिवलिंग की पूजा करना भी विशेष शुभ माना जाता है।
मां सरस्वती पूजा की विधि 
मां सरस्वती पूजा करते समय सबसे पहले सरस्वती माता की प्रतिमा अथवा तस्वीर को सामने रखना चाहिए।  इसके बाद कलश स्थापित करके गणेश जी तथा नवग्रह की विधिवत पूजा करनी चाहिए।  इसके बाद माता सरस्वती की पूजा करें। सरस्वती माता की पूजा करते समय उन्हें सबसे पहले आचमन एवं स्नान कराएं। इसके बाद माता को फूल एवं माला चढ़ाएं। सरस्वती माता को सिन्दुर एवं अन्य श्रृंगार की वस्तुएं भी अर्पित करनी चाहिए। बसंत पंचमी के दिन सरस्वती माता के चरणों पर गुलाल भी अर्पित किया जाता है। देवी सरस्वती श्वेत(सफेद) वस्त्र धारण करती हैं अत: उन्हें श्वेत वस्त्र पहनाएं। सरस्वती पूजन के अवसर पर माता सरस्वती को पीले रंग का फल चढ़ाएं। प्रसाद के रूप में मौसमी फलों के अलावा बूंदियां अर्पित करना चाहिए। इस दिन सरस्वती माता को मालपुए एवं खीर का भी भोग लगाया जाता है।

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि acn18.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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