Acn18.com/दुर्ग, छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में दशहरा पर्व की तैयारी शुरू हो चुकी है. बुराई पर अच्छाई के विजय का प्रतीक दशहरा पर्व मनाने के लिए दशहरा समितियों ने रावण के पुतले बनवाने शुरू कर दिए हैं. वहीं दुर्ग जिले के ग्राम कुथरेल में अपनी 50 साल पुरानी परंपरा को जीवित रखते हुए अपने पिता के बाद अब डॉक्टर जितेंद्र साहू रावण का पुतला बना रहे. उन्हें 20 से 70 फीच ऊंचे रावण के पुतले बनाने के लिए कई जिलों से ऑर्डर मिलते हैं. आखिर एक डॉक्टर मरीजों का इलाज करना छोड़ क्यों बनाते हैं रावण के पुतले, आइए इस खबर में हम आपको बताते हैं.
दुर्ग के कुथरेल गांव में 50 साल पहले गांव के ही किसान स्व लूनकरण साहू ने रावण के पुतले बनाकर दशहरा मनाने की परम्परा की शुरुआत की, लेकिन आज इस परम्परा को उनके बेटे आगे बढ़ा रहे हैं. किसान लूनकरण साहू पुतले बनाने की कला में पारंगत थे. उनके पास आसपास के जिलों के समितियां भी पुतले बनाने के ऑर्डर दिया करते थे, जिसके कारण आज भी कुथरेल में हर साल 50 पुतलों का निर्माण किया जाता है. विगत कई वर्षों से पुतला निर्माण का काम पूरा परिवार मिलकर करते आ रहे हैं.
ग्राम कुथरेल के 48 वर्षीय डॉ जितेन्द्र साहू द्वारा बनाया गया रावण का पुतला हर वर्ष प्रदेश के विभिन्न जिलों में जाता है. इस साल उनके द्वारा 25 पुतलों का निर्माण किया जा रहा है. गांव के लीला मैदान में उनके बनाए इतने सारे पुतले बाहर से आने वाले लोगों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है.
जितेन्द्र ने बताया कि वे पैदा नहीं हुए थे इसके पहले से उनके पिता स्व लोमन सिंह साहू रावण का पुतला बनाते आ रहे थे. लूनकरन साहू ने गांव में लीला मंडली का गठन किया. उनके पिता उन्हें बताते थे कि उन्होंने 300 रुपए से पुतला निर्माण करना शुरू किया था, तब स्व लोमन सिंह भिलाई एवं विभिन्न शहरों में वर्करों के साथ जाकर पुतला निर्माण करते थे. उस समय 4 -5 पुतले का ही आर्डर मिलता था. जितेन्द्र ने बताया कि उनके पिता की बनाई लीला मंडली आज भी ग्राम में संचालित हो रही है.
डॉ. जितेंद्र साहू ने बताया कि वे बचपन से अपने पिता के साथ पुतला निर्माण करना शुरू कर दिए थे. वे अपने पिता के इस कला और नाम को जीवित रखने के लिए इस कार्य को करते हैं. इसके लिए वे दो महीने क्लिनिक नहीं जाते हैं. दशहरा के डेढ़ माह पूर्व से वे रावण के पुतले बनाने का कार्य शुरू कर देते हैं. उनके इस कार्य में उनके छोटे भाई अंचल कुमार साहू के अलावा 20 कर्मचारी भी लगातार डेढ़ माह सहयोग करते हैं, तब जाकर इन पुतलों का निर्माण पूरा हो पाता है. उनका दावा है कि प्रदेश में हर साल सर्वाधिक उनके द्वारा रावण के पुतले बनाए जाते हैं. उन्होंने अभी तक सर्वाधिक 70 फीट तक की ऊंचाई का पुतला निर्माण कर चुके हैं. इस साल उनके पास 10 से 45 फीट की ऊंचाई तक के पुतले निर्माण का आर्डर है,। जिसकी कीमत 10 से 80 हजार रुपए तक की है.