छत्तीसगढ़ में हजारों लोगों ने भीमसेन पत्थर को हिलाया:बारिश के लिए 85 से ज्यादा गांव के ग्रामीणों ने की पूजा, 52 साल पुरानी परंपरा

Acn18.com/छत्तीसगढ़ में बस्तर संभाग सहित दंतेवाड़ा जिले में इस मानसून अच्छी बारिश नहीं हुई है। ऐसे में किसान भी काफी परेशान हैं। जिले में अच्छी बारिश के लिए ग्रामीणों ने अब आस्था का सहारा लिया है। इंद्रदेव को मनाने के लिए लगभग 85 गांव के लोगों ने उदेला की पहाड़ी पर देव भीमसेन के पत्थर को हिलाया है। हालांकि, इससे पहले ढोल-नगाड़े के साथ पूरे विधि-विधान से पूजा अर्चना की। फिर शिला को हिला कर सालों पुरानी परंपरा निभाई।

दंतेवाड़ा जिले के कुआकोंडा के अंदरूनी इलाके में उदेला की पहाड़ी में भीमसेन पत्थर है। जिसे देव के रूप में लोग पूजते हैं। उस इलाके के सैकड़ों गांव के हजारों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। मंगलवार को 85 गांव के पुजारी और सैकड़ों ग्रामीण पहाड़ी पर पहुंचे। जिन्होंने पहले पूजा-अर्चना की। फिर इंद्रवेद को मनाने के लिए भीमसेन पत्थर को हिलाया है। ग्रामीणों का मानना है कि अब जिले में अच्छी बारिश होगी।

ढोल-नगाड़ा लेकर पहुंचे ग्रामीण
उदेला की पहाड़ी पर स्थित भीमसेन देव को मनाने के लिए दंतेवाड़ा जिले के बड़े गुडरा, मोखपाल, मोलसनार, गंजेनार, उदेला, बुरगुम, पोटाली, नहाड़ी सहित कुआकोंडा इलाके के ही 85 गांव के ग्रामीण ढोल-नगाड़ा लेकर पहुंचे। पहाड़ी में चढ़ने से पहले भीमसेन को मनाने के लिए क्षेत्रीय देवी-देवताओं की भी पूजा अर्चना की। ग्रामीणों ने कहा कि, हमने भीमसेन को मनाया है बारिश जरूर होगी।
52 सालों से चली आ रही परंपरा
गांव के लोगों का कहना है कि, जब भी जिले में बारिश नहीं होती है तो वे भीमसेन को मनाने के लिए पहुंचते हैं। उदेला की पहाड़ी हमारी आस्था का केंद्र है। यहां देव भीमसेन का लगभग 7 फीट का पत्थर है। जिसकी पूजा-अर्चना की जाती है। यह परंपरा पिछले 52 सालों से चली आ रही है। जब भी वे भीमसेन के पत्थर को हिलाते हैं तो इलाके में अच्छी बारिश होती है।
यह भी जानिए
उदेला की पहाड़ी पर स्थित देव भीमसेन का असली नाम भीमचंद है। लेकिन इलाके के ग्रामीण इन्हें भीमसेन के नाम से ही पूजते हैं। ग्रामीणों का मानना है कि देव शक्तियों से ही पत्थर को हिलाया जाता है। सामान्य रूप से कितना भी बल लगा लें लेकिन पत्थर एक इंच भी नहीं हिलता है। पुजारी बतातें हैं कि, पूर्वजों के समय से ही बारिश के लिए भीमसेन पत्थर को हिलाने की परंपरा शुरू हुई थी। वे पुरानी परंपरा को बनाए रखे हैं। हालांकि भीमसेन देव का पूरा इतिहास ग्रामीणों को भी नहीं मालूम। केवल देव पर उनकी आस्था है।