रायपुर। प्रताड़ना या दबाव में आकर जान देने वालों ने जो सुसाइड नोट लिखा था, उसके आधार पर कार्रवाई फिलहाल बंद है। इसी तरह जालसाजी और कागजों में फ्राॅड जैसे मामलों की जांच भी अटकी है। वजह ये है कि इन मामलों में उपलब्ध दस्तावेजी सबूतों की फोरेंसिक जांच नहीं हो सकी है। भास्कर ने फोरेंसिक रिपोर्ट नहीं मिलने के कारणों की पड़ताल की, तब खुलासा हुआ कि जब तक हैंडराइटिंग का मिलान नहीं होता, तब तक फोरेंसिक रिपोर्ट नहीं बनेगी।
हैंडराइटिंग के मिलान के लिए दरअसल प्रदेश में एक्सपर्ट की कमी हो गई है। अभी तीन एक्सपर्ट हैं, जिनमें से अवकाश के कारण दो ही उपलब्ध हैं। हर एक्पसर्ट पर साल में औसतन 300 से ज्यादा केस का भार आ गया है। इस वजह से समय पर वे किसी भी केस में हैंडराइटिंग मिलान की रिपोर्ट नहीं दे पा रहे हैं। इसलिए मामले ही आगे नहीं बढ़ रहे हैं।
भास्कर की पड़ताल के मुताबिक अपराध अनुसंधान विभाग (सीआईडी) के क्यूडी (क्वेश्चन डाक्यूमेंट डिपार्टमेंट) विभाग में 150 से ज्यादा जांच तो पिछले डेढ़ साल से पेडिंग है। हैंडराइटिंग और दस्तावेजों में छेड़खानी करने वाले अपराधों की जांच में क्यूडी का रोल ही अहम है।
खुदकुशी के जिन मामलों में सुसाइड नोट मिलता हैं, सभी की जांच तथा मृतक की हैंडराइटिंग का मिलान जरूरी है। किसी दस्तावेज में छेड़खानी की गई, या ओवरराइटिंग हुई तो यही विभाग जांच करेगा। कई बार खुदकुशी करने वाले दीवार पर या अपने शरीर पर ही मौत का कारण और जिम्मेदारों का नाम लिखकर जान दे देते हैं। ऐसे तमाम गंभीर मामले केवल तीन एक्सपर्ट के ही भरोसे हैं।
थाने में भी अटकते हैं केस
फोरेंसिंक जांच के दौरान कई बार दस्तावेज में कमी होने पर थाने वापस भेज दिया जाता है। थाने से कमियां दूर करने में कई बार महीनों लग जाते हैं। वहां दोबारा रिपोर्ट भेजी जाती है। उसके बाद नए सिरे से जांच की प्रक्रिया की जाती है। एक जांच करने में लगभग एक से डेढ़ माह लग जाते हैं। उसके बाद रिपोर्ट थाने भेजी जाती है। रिपोर्ट उसी आधार पर आरोपियों की गिरफ्तारी की जाती है।
हैंडराइटिंग रिपोर्ट भी अहम
रायपुर कोर्ट के अधिवक्ता विपिन अग्रवाल और विशाल शुक्ला ने बताया कि क्याेडी की रिपोर्ट केस के लिए महत्वपूर्ण होती है। खुदकुशी करने वाले व्यक्ति ने सुसाइड नोट छोड़ा है, उसमें मौत के लिए जिन लोगों को जिम्मेदार बनाया गया है। उन पर आरोप साबित करने के लिए इसकी रिपोर्ट महत्वपूर्ण होती है। कानून मानता है कि मरने के पूर्व कोई व्यक्ति झूठ नहीं लिखता है। इससे केस को आधार मिलता है।
सैंपल लेने की लंबी प्रक्रिया में भी बर्बाद होता है समय
क्यूडी डिपार्टमेंट की जांच में इसलिए समय लगता है क्योंकि उसकी प्रक्रिया लंबी है। ज्यादातर मौकों में थानों से ही सैंपल पूरा या मापदंडों के अनुसार नहीं भेजा जाता है। तब उस खामी को पूरा करने के लिए चिट्ठियां चलती हैं। पूरा सैंपल आने के बाद ही जांच हो पाती है। बीपीआरडी के नियमों के अनुसार जांच के बाद रिपोर्ट बनाने में समय लगता है। दस्तावेज 10-15 साल से ज्यादा पुराना हो, तो और ज्यादा समय लग जाता है।
23 साल बाद अब होगी भर्ती
राज्य में फोरेंसिंक एक्सपर्ट के लिए 23 साल बाद भर्ती की प्रक्रिया की जा रही है। सब इंस्पेक्टरों के साथ तीन फारेंसिंक एक्सपर्ट भी भर्ती होंगे। बंटवारे में जो तीन अफसर मिले थे, अब तक वही हैं।
कई बार तकनीकी कारणों से भी विलंब
अर्जेंट केस में एक दिन में ही जांच कर रिपोर्ट देते हैं। 10 दिन के भीतर जांच कर रिपोर्ट देने का सिस्टम है। कई बार तकनीकी कारणाें से देरी होती है।
– डॉ. सुनंदा ढेंगे, फोरेंसिक एक्सपर्ट