Acn18.com/गरियाबंद जिले में मानसून की रफ्तार धीमी पड़ी हुई है। पर्याप्त बारिश नहीं होने के चलते खेत सूख रहे हैं। अपनी सूखती हुई फसल को बचाने के लिए अब देवभोग में 7 गांवों के 50 किसानों ने नदी का रुख मोड़ दिया है। इसके बाद किसानों ने टूटे स्ट्रक्चर को रेत की बोरियों से ढंका और 3 दिन की कड़ी मेहनत के बाद 1000 एकड़ खेत को सींचने लायक पानी पहुंचाया।
दरअसल किसानों की फसल पर अब कम हो रही बारिश के कारण सूखने का खतरा मंडराने लगा है। बुआई के बाद खेतों में दरार नजर आने लगी है। मानसून के सीजन में जमीन फट गई है। वहीं खरीफ में सूखे से निपटने के लिए करोड़ों की लागत से 24 सिंचाई योजनाएं बनाई गईं, लेकिन इसका लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है।
किसानों में फसल बर्बाद होने का डर
इस समय खेतों को पानी की भारी जरूरत है। इसके लिए तेल नदी के पार बसे 7 गांव के करीब 50 किसानों ने नदी का रुख मोड़ने में सफलता हासिल की। इस इलाके में सिंचाई सुविधा देने के लिए ‘तेल नदी जलप्लावन योजना’ बनी हुई है। 9 गांव के 600 हेक्टेयर खेतों की सिंचाई के लिए 400 चेन यानी 12 किमी लंबी नहर भी है, लेकिन जलप्लावन के कुओं में तेल नदी का पानी नहीं आ रहा है।
नहरों में भरी हुई रेत और जगह-जगह डैमेज हो चुके स्ट्रक्चर के कारण पानी अंतिम छोर तक भी नहीं पहुंच पा रहा था। ऐसे में दहीगांव, निष्टीगुड़ा, परेवापाली, सेनमुड़ा, सुपेबेडा, मोटरापारा के किसानों ने 3 दिन पहले नहरों में पानी ले जाने का संकल्प लिया। किसान प्रवीण अवस्थी, विशु अवस्थी, सूर सिंह, बरपोटा,पंचम, थबीर मरकाम, परमेश्वर, भोजोराम ने बताया कि पहले रेत की बोरियां और जरूरी सामान के लिए आपस में चंदा जुटाया, फिर जलप्लावन में बने कुएं के आगे तेल नदी के बहते पानी को रोककर उसका रुख कुएं की तरफ किया।
किसानों ने बताया कि कुल्लू चलाकर केनाल में जमे रेत को बाहर निकाला। दाहिगांव के पास नहर के क्षतिग्रस्त स्ट्रक्चर को रेत की बोरियों से भरकर जाम करने की कोशिश की। इससे गुरुवार दोपहर तक नहर का पानी परेवापालि तक पहुंच गया। उन्होंने बताया कि देर रात तक पानी अंतिम छोर के गांव सागुंनभाडी तक पहुंच जाएगा। किसान एकजुट होकर बारी-बारी से सभी खेतों में पानी भर रहे हैं। वे आज रात तक 1 हजार एकड़ को सींच लेने का दावा भी कर रहे हैं।
रेत से भरे नहर और क्षतिग्रस्त स्ट्रक्चर को लेकर किसान में विभाग के प्रति आक्रोश भी है। किसानों ने बताया कि 35 साल पुरानी इस योजना का सही फायदा अंतिम छोर पर बसे 5 गांवों को कभी नहीं मिला। आज पहली बार किसानों की खुद की मेहनत से पानी अंतिम छोर तक पहुंच सकेगा।
पानी के अभाव में खेती का काम रुका
वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी जेएल नाग ने बताया कि 25 हजार हेक्टेयर में खरीफ फसल लगाया गया है। 3 हजार हेक्टेयर में रोपाई होनी है। पिछले साल की तुलना में इस बार अब तक बारिश कम हुई है। पिछले साल अगस्त के पहले सप्ताह में 638 मिमी बारिश दर्ज की गई थी। इस बार अब तक 418 मिमी बारिश दर्ज की गई है। इसके चलते 40 फीसदी रोपाई का काम रुक गया है।कृषि अफसरों की मानें तो कम बारिश की वजह से उत्पादन प्रभावित होगा।
15 साल में 300 करोड़ फूंके गए
देवभोग सिंचाई अनुविभाग के अधीन 24 सिंचाई योजनाएं बनाई गईं। सभी योजनाएं वर्षा पर ही निर्भर है। रिकॉर्ड के मुताबिक, इन योजनाओं से देवभोग और अमलीपदर तहसील के 80 गांव में 7,004 हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई की सुविधा दी जानी थी। केवल वर्षा के जल पर आधारित इन योजनाओं के तहत तत्कालीन भाजपा सरकार के 15 सालों में ही 150 किमी लंबी मुख्य और शाखा नहरों का जाल बिछा दिया गया। 15 सालों में स्ट्रक्चर और नहर बनाने के लिए इसी इलाके में 300 करोड़ रुपए पानी की तरह बहाया गया।
तैयार सिंचाई योजनाओं की जल भराव क्षमता, जल आवक के स्रोत के अलावा अन्य तकनीकी विकल्प को दरकिनार कर दिया गया। किसान की आड़ में कॉन्ट्रैक्टर को फायदा पहुंचाने की नीयत से अनियमितता करने के आरोप भी लगे। सूखे और कम वर्षा के हालात में आज किसी भी योजना से सिंचाई का लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है। इसी से पता चलता है कि इन योजनाओं की क्या हकीकत है।
मरम्मत के लिए 14 करोड़ बजट में शामिल
विभाग के एसडीओ दीपक पाठक ने कहा कि कुम्हडी घाट के तेल नदी जलप्लवान योजना से सिंचाई सुविधा मिल रही थी। घूमरापदर जलाशय से भी पानी छोड़ा जा रहा है। कम बारिश के कारण टैंक और जलाशय में 20 फीसदी से कम जलभराव हुआ है। कई जलाशय तो खाली हैं। आगामी दिनों में सिंचाई लाभ सुचारू रूप से दिया जा सके, इसलिए आवश्यकता अनुसार 14 योजनाओं की नहर लाइनिंग, स्ट्रक्चर मरम्मत के लिए लगभग 40 करोड़ के विकास कार्य का प्रपोजल राज्य सरकार ने बजट में शामिल किया है।