Acn18.com/सावन के महीने में गरियाबंद जिले में स्थित भूतेश्वर महादेव के मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। गरियाबंद जिला मुख्यालय से महज 3 किलोमीटर की दूरी पर बसे ग्राम मरौदा के जंगल में प्राकृतिक शिवलिंग ‘भूतेश्वर महादेव’ स्थित है। यहां श्रावण मास में रोजाना भक्त शिवलिंग के दर्शन कर उनकी बेलपत्र, दूध, धतूरे के फूल से विशेष पूजा-अर्चना कर रहे हैं।
भूतेश्वर महादेव की ख्याति हर साल बढ़ने वाली इसकी ऊंचाई के कारण भी है। अर्धनारीश्वर के प्रतीक इस शिवलिंग को ‘भकुर्रा महादेव’ के नाम से भी जानते हैं। भूतेश्वर नाथ महादेव के पीछे भगवान शिव की प्रतिमा स्थित है, जिसमें भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान गणेश, भगवान कार्तिक, नंदी जी के साथ विराजमान हैं। इस शिवलिंग में हल्की सी दरार भी है, इसलिए इसकी अर्धनारीश्वर के रूप में पूजा की जाती है। इस शिवलिंग का बढ़ता हुआ आकार आज भी शोध का विषय है।
भूतेश्वर महादेव के पुजारी केशव सोम का कहना है कि हर वर्ष सावन मास में दूर-दराज से कांवड़िए (भक्त) भूतेश्वर महादेव की पूजा-अर्चना करने आते हैं। उन्होंने बताया कि हर साल महाशिवरात्रि पर भूतेश्वर महादेव की ऊंचाई नापी जाती है। वहीं 25 साल से भूतेश्वर महादेव संचालन समिति से जुड़े मनोहर लाल देवांगन ने बताया कि भूतेश्वर महादेव को भकुर्रा महादेव भी कहते हैं। यह संभवत: विश्व का पहला ऐसा शिवलिंग है, जिसकी ऊंचाई हर साल 6-7 इंच बढ़ रही है। यहां 17 गांवों की समिति मिलकर सेवा कार्यों का संचालन करती है।
भूतेश्वर महादेव की ऊंचाई का विवरण 1952 में प्रकाशित कल्याण तीर्थांक के पृष्ठ क्रमांक 408 पर मिलता है। उस वक्त इसकी ऊंचाई 35 फीट और व्यास 150 फीट बताया गया था। 1978 में इसकी ऊंचाई 40 फीट बताई गई। 1987 में 55 फीट और 1994 में फिर से थेडोलाइट मशीन से नाप करने पर 62 फीट और उसका व्यास 290 फीट मिला। वर्तमान में इस शिवलिंग की ऊंचाई 80 फीट है।
इतिहासकार डॉ दीपक शर्मा का कहना है कि शिवलिंग पर कभी छुरा क्षेत्र के जमींदार हाथी पर चढ़कर अभिषेक किया करते थे। शिवलिंग पर एक हल्की सी दरार भी है, जिसे कई लोग इसे अर्धनारीश्वर का स्वरूप भी मानते हैं। अब मंदिर परिसर में छोटे-छोटे मंदिर भी बना दिए गए हैं।
नंदी के भकुर्रने की आवाज आती थी, नाम भकुर्रा पड़ा
आजादी के पहले तक यहां घने जंगल हुआ करते थे। यहां चरवाहे मवेशियों को चराने आते थे। तब महज 3 फीट ऊंची शिवलिंग के रूप में इसकी पहचान थी, लेकिन गौ वंश इस चमत्कारिक पत्थर के इर्द-गिर्द मंडराते थे। इस जंगल में सांड के भकुर्राने यानी रंभाने की आवाज आती थी। शिवलिंग जब बढ़ने लगा, तो इसके प्रताप का पता चला। नंदी के भकुर्राने की आवाज के कारण इसका नाम भकुर्रा महादेव के रूप में प्रचलित हुआ।