पहली बार मायावती के साथ भाई-भतीजे की अलग कुर्सी:पार्टी में नंबर 2 कौन…यह मैसेज दिया, आकाश के जरिए युवाओं को साधने पर फोकस

Acn18.com/2024 के लिए मायावती एक्शन में आ गई हैं। करीब एक साल बाद उन्होंने लखनऊ से बाहर निकलकर दिल्ली में बड़ी बैठक की। यहां देशभर से आए पदाधिकारियों से बात की। जीत का मंत्र दिया। पक्ष और विपक्ष यानी NDA बनाम PDA के बीच बसपा ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है। वजह है कि दलित वोट बैंक पर मजबूत पकड़।

…लेकिन भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर को हमले के बाद दलितों की सहानुभूति मिल रही है। चंद्रशेखर जब अस्पताल में भर्ती थे तो बड़ी संख्या में युवा हॉस्पिटल के बाहर खड़े थे। सियासी जानकार कहते हैं कि पश्चिम यूपी में दलित वोट बैंक पर चंद्रशेखर की पकड़ धीरे-धीरे मजबूत हो रही है। मायावती इस बात को समझ रही है। इसलिए, दिल्ली में हुई बैठक में उन्होंने दो अहम संकेत दिए।

1-भाई आनंद और भतीजे आकाश की अलग कुर्सी
पहली बार मायावती के भाई आनंद और भतीजे आकाश आनंद की अलग कुर्सी लगाई गई। मायावती कार्यकर्ताओं के सामने बैठी थीं। जबकि भाई और भतीजा दाहिने ओर लगी कुर्सी पर बैठे थे। मायावती के प्वाइंट्स को नेशनल कोआर्डिनेटर आकाश नोट करते नजर आए। सिर्फ यही नहीं, उन्होंने कुछ सुझाव भी दिए।

सियासी जानकारों के मुताबिक इसका मतलब…
मायावती ने पार्टी में नंबर एक, नंबर दो और नंबर तीन का मैसेज देने की कोशिश की है। यही कारण है कि उन्होंने बाकी पदाधिकारियों से अलग उनकी कुर्सी लगवाई। चंद्रशेखर के बढ़ते कद को देखते हुए मायावती ने दलित युवाओं को साधने के लिए आकाश को आगे किया है।

2-चंद्रशेखर के ऑप्शन में आकाश
पश्चिम यूपी में चंद्रशेखर की पकड़ मजबूत हो रही है। बसपा प्रमुख ने दलित समाज के युवाओं को यह साफ मैसेज देने का प्रयास किया कि बसपा में युवा नेता और पार्टी का ऑप्शन आकाश है। जो राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी को लेकर काम कर रहे हैं। युवाओं को लेकर आकाश लगातार पार्टी में काम कर रहे हैं।

यूपी की राजनीति के वरिष्ठ पत्रकार प्रभा शंकर कहते हैं कि आमतौर पर मायावती अनुशासित पार्टी चलाने वाली नेता हैं। हालांकि, जिस तरह से मायावती ने भाई और भतीजे के लिए कुर्सी लगवाई। उससे उन्होंने पार्टी में परिवार की मौजूदगी का अहसास कराया है। संदेश साफ है कि पार्टी में परिवार के सदस्य ही दूसरे नंबर पर हैं।

दिल्ली में दो दिन तक चली बैठक का लेखा-जोखा 3 प्वाइंट में समझिए…

  • आकाश के बहाने बसपा का युवाओं पर फोकस

यूपी में 2022 के चुनाव में बसपा को तगड़ा झटका लगा। पार्टी का वोट शेयर 22% से घटकर 11% पर आ गया था। इसलिए, अब बसपा अपना खोया जनाधार पाने के लिए युवाओं को जोड़ेगी। सूत्रों के मुताबिक, युवाओं की आइडियोलॉजी को मजबूत करने के लिए सोशल मीडिया का एक प्लेटफार्म आकाश आनंद की अगुआई में पार्टी बनाएगी।

  • राजस्थान, MP, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की आकाश को जिम्मेदारी

मायावती ने बैठक में कहा कि आकाश की अगुआई में पार्टी 4 राज्यों में चुनाव लड़ेगी। उनके साथ राज्यसभा सदस्य रामजी गौतम भी रहेंगे। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना ऐसे राज्य हैं, जहां पिछले चुनाव में कुछ सीटें जीतकर बसपा अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही है।

साल 2018 में राजस्थान में 6, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में दो-दो विधानसभा सीटें जीती थीं। तेलंगाना में पिछली बार पार्टी ने कोई सीट नहीं जीती। मगर, 3% वोट मिले थे। पार्टी यहां दलित वोट बैंक के सहारे प्रदर्शन बेहतर करना चाह रही है। लोकसभा से पहले होने वाले 4 राज्यों के विधानसभा चुनाव आकाश के लिए ट्रायल मैच की तरह होंगे।

  • बसपा ने किया है अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान

लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर पार्टी यूपी में अकेले चुनाव लड़ेगी। पार्टी ने किसी अन्य के साथ गठबंधन से इनकार किया है। लोकसभा से पहले विपक्षी मोर्चे की बातें हो रही हैं। ऐसे में कोई भी पार्टी अपने सभी दरवाजे खुले रखना चाहती हैं। हालांकि बसपा का अगला कदम क्या होगा? उसमें इस साल 4 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव नतीजों की अहम भूमिका होगी।

लोकसभा चुनाव के लिए बदली रणनीति, मुस्लिम वोट पर नजर
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बसपा प्रमुख मायावती मुस्लिमों को साधने के लिए आक्रामक हुई हैं। मुस्लिमों के मुद्दे पर वह बीजेपी पर भी जमकर निशाना साध रही हैं। वहीं, सपा पर भी सवाल खड़े कर रही हैं। जबकि मायावती ने नीतीश कुमार की बुलाई गई विपक्षी दलों की बैठक को भी नाटक करार दिया था।

साल 2012 के बाद लगातार गिरता जा रहा पार्टी का जनाधार
यूपी में साल 2012 में कुर्सी गंवाने के बाद साल 2014 के लोकसभा चुनाव में शून्य पर सिमटने के बाद से बसपा प्रमुख ने कई बार संगठन में फेरबदल किया है। लेकिन, एक दशक के दौरान हुए चुनावों में बसपा का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा। इसके बाद अप्रत्याशित तौर पर सपा-रालोद से हाथ मिलाने पर साल 2019 में पार्टी के 10 सांसद जरूर जीते।

चुनाव बाद ही सपा का साथ छोड़ने पर भी पार्टी के दिन अच्छे नहीं हुए। विधानसभा चुनाव में तो पार्टी सिर्फ एक विधायक तक ही सिमट कर रह गई। ऐसे में लोकसभा चुनाव में भी फिर कहीं साल 2014 वाली स्थिति न रह जाए। इसके लिए मायावती ने अप्रैल में संगठन में बदलाव किया। इसके बाद लोकसभा उपचुनाव में आजमगढ़ सीट से उम्मीदें थी, लेकिन हार ही मिली।

NDA और PDA क्या है?
NDA का मतलब नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन है। यह गठबंधन 1998 में बनाया गया था। जिसके दम पर 1998 से लेकर 2004 तक भाजपा केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार चलाने में कामयाब रही। NDA के घटक दल अब तक साथ में मिलकर 6 लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। इसी बीच आजकल चर्चा में PDA आया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इसका मतलब P-पिछड़ा, D-दलित, A-अल्पसंख्यक बताया है।