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अंतरराष्ट्रीय योग दिवस:अलेख महिमा पंथ को मानने वाले रोजाना दो वक्त करते हैं योग, बीमार भी हो गए स्वस्थ, शुगर-बीपी किसी को नहीं

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Acn18.com/गरियाबंद जिले में 25 साल पहले स्थापित अलेख महिमा पंथ के अनुयायियों के लिए योग का बहुत महत्व है। यहां के 50 गांवों में फैले 30 हजार अनुयायी नियमित रूप से योग करते हैं। रोजाना 2 वक्त सूर्य नमस्कार करते हैं।

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गेरुआ वस्त्र धारण करने वाले अलेख महिमा पंथ के अनुयायियों के लिए नियमित योग और संतुलित आहार किसी आराधना से कम नहीं है। यही वजह है कि इसके किसी भी सदस्य को शुगर, बीपी जैसी कोई बीमारी नहीं है। इस अंचल में अलेख महिमा पंथ को मानने वाले 30 हजार लोग रोजाना सूर्योदय और सूर्यास्त से पहले नियमित रूप से मुड़िया मारते हैं। मुड़िया सूर्य नमस्कार योग प्रक्रिया है, जिसे 7 बार यानी आधा घंटा नियमित रूप से सुबह-शाम करना होता है। पंथ के मानने वालों में महिला सदस्य भी शामिल हैं।

पंथ के प्रमुख बाबा उदय नाथ बताते हैं 1998 में इसकी शुरुआत 20 से 30 लोगों के साथ हुई थी। निराकार शून्य की आराधना करने वाला यह पंथ योग साधना और संतुलित आहार पर केंद्रित है।पंथ में शामिल होने वाले को नशा और तामसी भोजन का त्याग करना होता है। सूर्योदय से पहले उठना और सूर्यास्त के पहले भोजन करना होता है। दोनों ही बेला में मुड़िया मारा जाता है।

रोग मुक्त होने लगे लोग, फिर नियमित योग को अपनाया

बाबा उदय नाथ बताते हैं कि अलेख महिमा में सन 2004 के बाद ज्यादातर वही लोग जुड़े, जिन्हें शारीरिक कष्ट था। जुड़ने के बाद नियमों का पालन कड़ाई से करना होता है, इससे दिनचर्या में बदलाव आया। लोग धीरे-धीरे स्वस्थ और निरोग होते गए।

30 हजार सदस्यों में 8 हजार महिलाएं और 4 हजार बच्चे हैं। सभी का उल्लेख पंजी में है। लोकप्रियता को देखते हुए काडसर के अलावा कदलीमुड़ा और मोखागुड़ा में भी अलेख गादी बनाया गया है। प्रत्येक हिन्दू पर्व पर गौ और पर्यावरण से जुड़े वृहद आयोजन साल में 6 बार आयोजित किए जाते हैं। हर साल अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर भी अनुयायी आश्रम में जुटते हैं।

योग समतुल्य मुड़िया का इतिहास 100 साल से ज्यादा पुराना

योग को गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए भले ही सरकारी अभियान कुछ साल पहले शुरू किया गया हो, लेकिन अलेख महिमा पंथ को मानने वाले लोग इसकी शुरुवात 100 साल से भी पहले कर चुके थे। ओडिशा के जुरूंगा गादी से भीम भोई नाम के एक महात्मा ने इसकी शुरुआत की थी।

महात्मा भीम भोई के शिष्य बाबा उदय नाथ ने काडसर के जंगल में एक कुटिया बनाकर छत्तीसगढ़ में इस पंथ का विस्तार किया। आज बाबा उदय नाथ गौ सेवक के रूप में विख्यात हैं। उनका आश्रम अलेख महिमा गौशाला के रूप में विकसित हुआ है। भारी संख्या में लोगों का इस आश्रम में आना-जाना लगा रहता है।

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