Acn18.com/छत्तीसगढ़ के बस्तर में आज भव्य रूप से गोंचा पर्व मनाया जाएगा। आज शाम भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाएगी। साल की लकड़ी से करीब 20 फीट लंबे और 14 फीट चौड़े रथ का निर्माण किया गया है। अलग-अलग तीन रथों में भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र सवार होकर नगर की परिक्रमा के लिए निकलेंगे। बस्तर के लोग रथ को बांस से बनी तुपकी से सलामी देकर गोंचा पर्व मनाएंगे। बस्तर में यह परंपरा 615 सालों से चली आ रही है।
360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष ईश्वर नाथ खबारी ने बताया कि, बस्तर गोंचा पर्व के 615 वर्षों की ऐतिहासिक परंपरा अनुसार एक दिन पहले नेत्रोउत्सव पूजा विधान पूरा किया गया है। प्रभु जगन्नाथ भक्तों को दर्शन दिए हैं। गोंचा पर्व के लिए बेड़ा उमर गांव के कारीगरों ने रथ निर्माण किया है। इस काम को 7 दिनों में पूरा किया गया है।
तुपकी से दी जाएगी सलामी
बस्तर में रथ को तुपकी से सलामी दी जाती है। यह परंपरा भारत देश में केवल बस्तर में ही निभाई जाती है। गोंचा पर्व में तुपकी का भी एक अलग ही महत्व है। गर्मी के बाद जब बारिश का मौसम आता है तो कई तरह की बीमारियां होती है। तुपकी में जिस पेंग का इस्तेमाल किया जाता है वह एक औषधि के रूप में होता है। उसकी महक लाभदायक होती है। पेंग की सब्जियां भी बनाई जाती है।
यह है परंपरा
बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव की मानें तो सन 1400 में महाराज पुरुषोत्तम देव पैदल जगन्नाथ पुरी गए थे। वहां से प्रभु जगन्नाथ की मूर्तियां लेकर आए थे। जिसे जगदलपुर के जगन्नाथ मंदिर में स्थापित किया गया। जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर ही यहां रथ यात्रा निकाली जाती है। जिसमें प्रभु जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र रथ पर सवार होते हैं। साथ ही राजा और यहां के माटी पुजारी होने के नाते कमलचंद भंजदेव चांदी के झाड़ू से छेरा पोरा रस्म निभाते हैं। जगन्नाथपुरी में सोने के झाड़ू से इस रस्म की अदायगी के बाद ही बस्तर में यह रस्म अदा की जाती है।
यह भी जानिए
बताया जाता है कि, बस्तर महाराजा पुरुषोत्तम देव श्री कृष्ण के भक्त थे। सन 1400 में लंबी यात्रा कर वे जगन्नाथ पुरी पहुंचे थे। देवकृपा से उन्हें रथपति की उपाधि देकर 16 पहियों वाला रथ प्रदान किया गया था। उन दिनों बस्तर की सड़कें इतनी अच्छी नहीं थीं कि 16 पहियों वाला रथ सुगमता से खींचा जा सके। इसलिए सुविधा अनुसार 16 पहिए वाले रथ को तीन हिस्सों में बांट दिया गया था। चार पहिया वाला पहला रथ गोंचा के अवसर पर खींचा जाता है। वहीं चार पहियों वाला दूसरा रथ बस्तर दशहरा में फूल रथ के नाम से 6 दिनों तक खींचा जाता है। 8 पहियों वाला तीसरा रथ भीतर तथा बाहर रैनी के दिन खींचा जाता है।