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टाइगर हिल विजय के 24 साल:मुझे 15 गोलियां लगीं, दुश्मनों को लगा मर गया; TV से पता चला परमवीर चक्र मिला है

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Acn18.com/‘’पाकिस्तान की फौज जमकर फायरिंग कर रही थी। हमारा हाल ऐसा था कि एक कदम आगे रखते तब भी मौत होती और पीछे हटते तो भी शहीद होना तय था। हमने तय किया कि मरने से पहले जितने दुश्मनों को मार सकते हैं मारेंगे, लेकिन पीछे नहीं हटेंगे। मुझे 15 गोलियां लगीं। दुश्मनों को लगा ये मर गया, पर जब आंख खुली तो हम 17 हजार फीट ऊंचे टाइगर हिल पर तिरंगा फहरा चुके थे।’’

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24 साल पहले आज ही के दिन बुलंदशहर के रहने वाले कैप्टन योगेंद्र यादव ने टाइगर हिल फतह की थी। उन्हें इस बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से नवाजा गया। आज टाइगर हिल विक्ट्री की कहानी पढ़िए उन्हीं की जुबानी…

उम्र 19 साल और ढाई साल का सर्विस एक्सपीरिएंस। ना उम्र का तजुर्बा ना सर्विस का ज्यादा अनुभव। सामने 17 हजार फीट ऊंची टाइगर हिल पर तिरंगा फहराने का टारगेट। चारों तरफ बर्फ ही बर्फ। दिनभर दुश्मन की नजर से बचना और सिर्फ रात के अंधेरे में चढ़ना। पहले एक टीम कोशिश कर चुकी थी, लेकिन कामयाबी नहीं मिली थी। इसके बाद टाइगर हिल जीतने के लिए 18 ग्रेनेडियर यूनिट को जिम्मेदारी दी गई। इसकी कमान लेफ्टिनेंट खुशहाल सिंह को मिली।

2 जुलाई की रात, हम 21 जवानों ने ऊपर चढ़ना शुरू किया। हम पूरी रात चले। जैसे ही सुबह हुई पत्थरों की आड़ लेकर छुप गए। दिनभर हम छुपे रहे। जरा सी भी मूवमेंट करने का मतलब था जान गंवाना, क्योंकि दुश्मन ऊंचाई पर थे। वे हमें आसानी से देख सकते थे।

देर शाम जैसे ही अंधेरा हुआ हम फिर से ऊपर चढ़ने लगे। एक के बाद एक ऊंची चोटियों की चढ़ाई हम करते जा रहे थे। कई बार तो ऐसा लगता था कि यही टाइगर हिल है, लेकिन फिर थोड़ी ही दूर पर उससे भी बड़ी चोटी दिखाई पड़ती थी।

धीरे-धीरे हमारा खाना भी खत्म हो रहा था। प्यास भी लग रही थी, पर हमें इसकी परवाह नहीं थी। मन में बस इतना ही था कि जैसे भी हो जल्दी से जल्दी ऊपर चढ़ना है। भूखे-प्यासे रस्सियों के सहारे एक-दूसरे का हाथ पकड़कर आगे बढ़ते रहे।

अगले दिन पाकिस्तान की आर्मी को इसकी भनक लगी कि इंडियन आर्मी ऊपर चढ़ गई है। उन्होंने दोनों तरफ से फायर खोल दिए। जैसे-तैसे पत्थरों की आड़ में छुपकर हम 7 बंदे ऊपर चढ़ गए, लेकिन बाकी के सैनिक नीचे ही रह गए। दुश्मनों की तरफ से इतनी जबरदस्त फायरिंग हो रही थी कि उन्हें हिलने का मौका ही नहीं मिला।

सामने एकदम खड़ी चट्टान। मुझे लगा कि इस पर चढ़ना मुमकिन नहीं है। फिर हमें एक आइडिया सूझा। एक साथी काफी लंबा था। मैं उसके कंधे पर चढ़ गया और ऊपर एक पत्थर में रस्सी बांध दी। फिर उस रस्सी के सहारे दोनों ऊपर चढ़े। इस तरह हम एक-दूसरे के कंधे पर चढ़कर रस्सी के सहारे आगे बढ़ने लगे।

कुछ घंटों की चढ़ाई के बाद जब हम ऊपर पहुंचे तो सामने दुश्मन के दो बंकर थे। उन्होंने तत्काल फायरिंग शुरू कर दी, लेकिन हम भी कहां रुकने वाले थे। पलक झपकते हमने भी एक साथ फायर खोल दिया। एक के बाद एक उनके दोनों बंकर ध्वस्त। चार दुश्मन भी ढेर हो गए।

अब यहां से टाइगर हिल सिर्फ 50-60 मीटर की दूरी पर था। पाकिस्तान की फौज ने देख लिया कि इंडियन आर्मी यहां आ गई है। उन्होंने फायरिंग और गोलाबारी शुरू कर दी। अब हमारे सामने ऐसी स्थिति थी कि ना पीछे हट सकते थे, ना बहुत देर छिपे रह सकते थे। हम यह मान चुके थे कि अब मरना ही है।

तब हमारे कमांडर थे हवलदार मदन। उन्होंने बोला कि दौड़कर इन बंकरों में घुस जाओ। हमने कहा सर, दुश्मनों ने माइन लगा रखी होगी। उन्होंने कहा तो क्या हुआ, बहुत होगा तो जान ही जाएगी न…। हमारी फौज के अंदर डिसिप्लिन है, जो ऑर्डर मिल गया उसे मानना ही था।

4 जुलाई की सुबह हम उनके मोर्चे में घुस गए। 5 घंटे तक दोनों तरफ से लगातार फायरिंग होती रही। अब हमारा गोला-बारूद भी खत्म हो रहा था। हमारे बाकी साथी जो सपोर्ट कर रहे थे, वे करीब 25-30 फीट नीचे थे।

हमने उनसे कहा कि ऊपर नहीं चढ़ सकते तो एम्युनेशन ही ऊपर फेंक दो। उन्होंने रुमाल में बांधकर एम्युनेशन फेंके, लेकिन हम इतने मजबूर थे कि एक कदम आगे पड़े उस एम्युनेशन को उठा नहीं सकते थे, क्योंकि ऊपर से दुश्मन देख रहे थे। हम सोच में पड़ गए कि बिना एम्युनेशन आगे कैसे बढ़ेंगे।

हमने एक प्लान किया कि अब फायर नहीं करेंगे, ताकि दुश्मनों को यकीन हो जाए कि भारत के जवान मारे गए। पत्थरों की आड़ लेकर हम छुप गए और फायरिंग बंद कर दी। उधर से दुश्मन लगातार फायरिंग कर रहे थे। आधे घंटे बाद पाकिस्तान के 10-12 जवान ये जानने के लिए अपने बंकर से बाहर निकले कि सच में हिंदुस्तानी सैनिक मारे गए या कुछ जिंदा भी बचे हैं…

इधर हमने पहले से प्लानिंग कर रखी थी। आपस में को-ऑर्डिनेशन बनाया हुआ था। वे जैसे ही बाहर निकले हमने एक साथ अटैक कर दिया। एक-दो को छोड़कर सभी दुश्मन हमने ढेर कर दिए। इसके बाद हमने उनके एम्युनेशन उठा लिए। अब हमारे पास एम्युनेशन और हथियार की कमी नहीं थी।

पाकिस्तान की तरफ के दो सैनिक बच गए थे। वे भागने में कामयाब रहे। उन्होंने वापस जाकर अपनी टीम को खबर कर दी। आधे घंटे के भीतर पाकिस्तान के 30-35 जवान हम पर टूट पड़े। उनके पास काफी मात्रा में हथियार और एम्युनेशन थे। आधे घंटे तक तो उन लोगों ने हमें सिर उठाने का भी मौका नहीं दिया।

हमने फिर से फायरिंग रोक दी और पाकिस्तानी सैनिकों के नजदीक पहुंचने का इंतजार करने लगे। हम नहीं चाहते थे कि उन्हें हमारी लोकेशन पता चले। इसी बीच उन्हें हमारे LMG राइफल की लाइट दिख गई। हम चौकन्ने थे, पर उनकी नजर भी पैनी थी। उन लोगों ने ऊपर से ग्रेनेड दाग दिए।

हमारा LMG डैमेज हो गया। फिर वे ऊपर से पत्थरों से हमला करने लगे। गोले फेंकने लगे। हमारे साथी जवान जख्मी हो गए। किसी का पैर कटा, तो किसी की उंगली कट गई।

हमने अपने इन साथियों से कहा कि नीचे लौट जाओ, क्योंकि तुम लोग फायर नहीं कर पाओगे, लेकिन उन्होंने नीचे जाने से इनकार कर दिया। यही भारतीय फौज की खासियत है। पीछे मुड़ना हमें सिखाया ही नहीं गया है। या तो तिरंगा फहराकर लौटेंगे या तिरंगे में लिपटकर, खाली हाथ नहीं।

उधर पाक के जवान बेहद करीब आ गए थे। उन लोगों ने हमें चारों तरफ से घेरकर अटैक कर दिया। पल भर में सब कुछ खत्म हो गया। हमारे सभी साथी शहीद हो गए। मैं बेहोश पड़ा था, लेकिन उनकी नजर में तो मर चुका था।

उनके कमांडर ने कहा कि जरा चेक करो इनमें कोई जिंदा तो नहीं है। वे आकर एक-एक सैनिकों को गोलियां मारने लगे। मैं चुपचाप लेटा था। उन्होंने मेरे पैर और हाथ में गोली मारी। दर्द इतना हुआ कि बता नहीं सकता, लेकिन अचेत पड़ा रहा, जैसे कोई लाश हो।

मन में अटूट विश्वास था कि दुश्मनों ने अगर सीने में गोली नहीं मारी, तो मैं मरूंगा नहीं। कुछ देर बाद उनका एक जवान हमारे हथियार उठाने आया। उसने मेरे सीने की तरफ बंदूक तान दी, तब तो मुझे लगा कि अब बचूंगा नहीं, लेकिन भारत मां की कृपा थी कि उसकी गोली मेरी पॉकेट को छूकर निकल गई।

मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। लहूलुहान पड़ा था। नाक से खून की धारा बह रही थी। मेरी हालत ऐसी थी कि खुद भी पता नहीं चल पा रहा था कि जिंदा हूं कि नहीं। पूरी तरह अचेत अवस्था में था।

इसी बीच मुझे गोली मारने के बाद जब पाकिस्तानी सैनिक आगे बढ़ा, तो मेरे पैर से टकरा गया। इससे मेरे अंदर थोड़ी जान आ गई। अंदर से आवाज आई कि यार योगेंद्र तुम अब तक नहीं मरे तो अब नहीं मरोगे। अटैक कर दो।

मैंने हिम्मत करके अपने पॉकेट से एक ग्रेनेड निकाला और उसके ऊपर फेंक दिया। उसका सिर अलग हो गया। उस धमाके के बाद पाकिस्तानी सैनिक पूरी तरह हिल गए। इसके बाद मैंने हिम्मत जुटाई और दुश्मन की ही बंदूक उठाकर जगह बदल-बदलकर फायरिंग करने लगा। दुश्मनों को लगा कि सपोर्ट के लिए नीचे से भारत की फौज आ गई है। वे भाग निकले।

उसके बाद मैं अपने साथियों के पास गया। एक भी साथी जिंदा नहीं बचा था। काफी देर तक मैं रोता रहा। हाथ में गोली लगने से हड्डियां टूट गई थीं। भयंकर दर्द हो रहा था। जी कर रहा था कि हाथ को तोड़कर फेंक दूं। तोड़ने की कोशिश भी की, लेकिन हाथ नहीं टूटा। फिर अपनी बेल्ट के सहारे हाथ को फंसा लिया।

चारों तरफ बर्फ ही बर्फ थी। यह भी नहीं पता था कि भारत किधर है और पाकिस्तान किधर है। एक नाले से लुढ़कते हुए नीचे पहुंचा। वहां से मेरे साथी आए और मुझे उठाकर ले गए। किसी को उम्मीद नहीं थी कि ये जिंदा बचेगा।

वे मुझे कमांडिंग ऑफिसर खुशहाल सिंह ठाकुर के पास लेकर गए। मैंने उन्हें ऊपर के हालात के बारे में जानकारी दी। मुझे बस इतना ही याद है। उसके बाद बेहोश हो गया। जब होश आया तो पता चला श्रीनगर आर्मी अस्पताल में हूं। अस्पताल में ही मुझे जानकारी मिली कि हमारी टीम ने टाइगर हिल पर तिरंगा फहरा दिया है।

सबसे कम उम्र में परमवीर चक्र सम्मान

तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन, योगेंद्र यादव को परमवीर चक्र से सम्मानित करते हुए।
तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन, योगेंद्र यादव को परमवीर चक्र से सम्मानित करते हुए।

15 अगस्त को 2000 को योगेंद्र यादव को सेना का सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र मिला। वे सबसे कम उम्र में यह सम्मान पाने वाले सैनिक हैं। इसको लेकर भी दिलचस्प किस्सा है। योगेंद्र बताते हैं, ‘14 अगस्त की बात है। मैं टीवी देख रहा था। उसी से मुझे पता चला कि मरणोपरांत 18 ग्रेनेडियर यूनिट के जवान योगेंद्र सिंह को परमवीर चक्र मिला है।

मेरे लिए यह गर्व की बात थी कि अपनी यूनिट के एक जवान को यह सम्मान मिलने वाला है। कुछ देर बाद मुझे बताया गया कि सुबह सेना प्रमुख मुझसे मिलने वाले हैं। मुझे पता नहीं था कि वे क्यों मिलने आ रहे हैं। सुबह सेना प्रमुख आए। उन्होंने मुझे बधाई दी। तब मुझे पता चला कि परमवीर चक्र मुझे ही मिला है। दरसल मेरी यूनिट में मेरे ही नाम का एक और जवान था। इसलिए ये कंफ्यूजन हुआ था।

IIT सहित 500 से ज्यादा संस्थानों में दे चुके हैं स्पीच

कैप्टन योगेंद्र यादव दो साल पहले आर्मी से रिटायर हुए हैं। वे पूरे देश के लिए हीरो हैं, आइकॉन हैं। उन्हें कई सम्मान मिल चुके हैं। युवाओं को मोटिवेट करने के लिए वे देश के बड़े-बड़े संस्थानों में जाते रहते हैं। IIT दिल्ली, कानपुर, IIT बॉम्बे, IIM इंदौर और IIM अहमदाबाद सहित देश के 500 से ज्यादा संस्थानों में स्पीच दे चुके हैं। वे अमिताभ बच्चन के साथ KBC की हॉट सीट पर भी बैठ चुके हैं।

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