ACN18.COM बिलासपुर। शादी के महज तीन महीने ससुराल में गुजारने के बाद पत्नी अपने मायके लौट गई। पति लेने पहुंचा तो ससुराल में रहने से साफ इनकार कर दिया। कहा कि वह पति के परिजनों के साथ नहीं रह सकती। पति से कहा कि साथ रहना है तो मेरे मायके में रहना होगा। पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर पूरे प्रयास करने के बाद भी पत्नी अपने मायके से नहीं लौटी तो पति ने फैमिली कोर्ट में केस लगाया, लेकिन कोर्ट ने इसे नामंजूर कर दिया।
हाईकोर्ट के जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस एनके चंद्रवंशी की बेंच ने पति पर मायके में रहने के लिए दबाव डालने को क्रूरता मानते हुए तलाक की अर्जी मंजूर की है। कोरबा के शैलेंद्र चंद्रा की शादी 18 जून 2011 को सक्ती की भारती से हुई। उनका वैवाहिक जीवन तीन माह तक ठीक से गुजरा, फिर दोनों में विवाद होने लगा।
एक दिन पति को जानकारी दिए बगैर पत्नी अपने पिता के साथ मायके चली गई। कई बार समझाने पर वह ससुराल लौटी, लेकिन पति से कहा कि वह उसके परिजन के साथ नहीं रहना चाहती। साथ जीवन गुजारना है तो मेरे साथ मायके में रहना होगा। ऐसा नहीं करने पर दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज कराने की धमकी दी। इसके बाद 25 मार्च 2012 को पति को बिना बताए फिर अपने पिता के साथ मायके लौट गई।
हाईकोर्ट ने मंजूर किया आवेदन, सुको के फैसले का हवाला
हाईकोर्ट ने कोरबा फैमिली कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि यह कहने में संकोच नहीं कि कोर्ट ने आदेश जारी करने में गंभीर त्रूटि की है। कोर्ट ने निर्णय देने की जगह काउंसलर की भूमिका निभाई, जबकि कोर्ट का दायित्व सबूतों के आधार पर निर्णय देना था। हाईकोर्ट ने क्रूरता के आधार पर तलाक की डिक्री मंजूर की है।
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया है, जिसमें सुको ने कहा था कि भारतीय परिवारों में शादी के साथ माता-पिता से अलग रहने की परंपरा नहीं। बच्चे की परवरिश और पढ़ाई- लिखाई कराने के साथ योग्य बनाने वाले माता-पिता नहीं चाहते कि उनका बेटा अलग रहे। खासकर परिवार में एकमात्र कमाने वाला सदस्य होने पर। ऐसी स्थिति में पति पर अपने परिजन से अलग रहने का दबाव डालना क्रूरता माना जाएगा।
पति पर दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज कराने की धमकी दी
पति अपने परिजन और समाज के कुछ प्रतिष्ठित लोगों के साथ पत्नी को लाने गया, लेकिन वह नहीं लौटी। इस बीच, दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज कराने की धमकी देती रही। आखिरकार शैलेंद्र ने कलेक्टर और पुलिस अफसरों को आवेदन दिया। इसके बाद कोरबा के फैमिली कोर्ट में हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत विवाह विच्छेद के लिए मामला लगाया। यहां उनमें समझौता हो गया, फिर भी वह ससुराल में नहीं रहती थी।
21 मार्च 2013 को वे तमिलनाडु के तुतीकोरिन से लौट रहे थे। 22 मार्च 2013 को वह बहाना कर रायपुर स्टेशन में उतर गई और पिता के साथ मायके चली गई। पति ने 11 अप्रैल 2013 को मां की तबीयत खराब होने पर बुलाया तो नहीं आई। समाज से नोटिस भेजने पर लेने से इनकार कर दिया। सभी प्रयासों के बाद भी वापस नहीं आने पर पति ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी।
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