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खेत में उतरा UFO जैसा गुब्बारा, जादू देखने पहुंचे लोग:स्पेस टूरिज्म का टेस्टिंग ग्राउंड बना हैदराबाद, अंतरिक्ष में होगा शादी-पार्टी का इंतजाम

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acn18.com हैदराबाद/7 दिसंबर को सुबह के 6-7 बज रहे थे। हैदराबाद के आसमान में एक राउंड ऑब्जेक्ट या कहें बड़े गुब्बारे जैसा कुछ उड़ता नजर आया। यहां के लोगों को लगा शायद ऐड के लिए किसी ने बड़ा गुब्बारा आसमान में छोड़ा है। ऑब्जेक्ट जैसे-जैसे नीचे आया, ये किसी UFO (Unidentified flying object) या अनजान एलियन शिप जैसा नजर आने लगा। इलाके में हंगामा मच गया।

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रामोजी फिल्म सिटी में मौजूद टॉलीवुड के डायरेक्टर जगरलामुदी कृष ने इसका वीडियो बनाया और सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया। वीडियो सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगा। बाद में पता चला कि हैदराबाद से 100 किलोमीटर दूर विकराबाद के मोगलीगुंडला गांव के खेत में ये चीज लैंड हुई है।

राउंड स्पेसशिप की तरह नजर आ रहे इस ऑब्जेक्ट को देखने के लिए सैकड़ों लोग जमा हो गए। पुलिस भी पहुंच गई। ब्लैक-ग्रे कलर में हार्ड प्लास्टिक मटेरियल से बने इस ऑब्जेक्ट के चारों तरफ कैमरे लगे थे। सभी इंतजार करने लगे कि कब इसका गेट खुलेगा और शायद इसमें से कोई एलियन निकलेगा।

भीड़ बढ़ती जा रही थी और पुलिस को लोगों को कंट्रोल करना पड़ा। इस बीच मोगलीगुंडला गांव में एक कार में सवार 6-7 लोग पहुंचे और उन्होंने जाकर पहले उस ऑब्जेक्ट का मुआयना किया और फिर एलियन वाली अफवाह पर से परदा उठाया।

राउंड ऑब्जेक्ट स्पेसशिप नहीं, एक्सपेरिमेंटल बैलून था​
टीम में हैदराबाद के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) के बैलून डिपार्टमेंट के वैज्ञानिक थे। उनमें से एक वैज्ञानिक ने लोगों को बताया कि ये कोई स्पेसशिप नहीं, बल्कि स्पेस टूरिज्म से जुड़े एक प्रोजेक्ट का एक्सपेरिमेंट है। इसमें मौजूद हीलियम गैस निकाली गई और फिर इसे डिसमेंटल कर वापस ले जाया गया।

यह फ्लाइंग ऑब्जेक्ट एक एक्सपेरिमेंटल बैलून था। इसे 800 किलोग्राम पेलोड के साथ सिकंदराबाद के बाहरी इलाके में मौजूद TIFR के बैलून डिपार्टमेंट ने लॉन्च किया था। इसमें बैलून का वजन ही तकरीबन 620 किलोग्राम था।

भास्कर ने TIFR के बैलून डिपार्टमेंट के चेयरमैन देवेंद्र कुमार ओझा से बात की, तो पूरा मामला समझ आया। ओझा के मुताबिक यह बैलून एक तरह का स्पेस कैप्सूल है। इसमें 2.8 लाख क्यूबिक मीटर हीलियम गैस भरी जा सकती है। इसमें बैठाकर लोगों को धरती से 40 किलोमीटर दूर स्पेस में ले जाया जाएगा। स्पेन की कंपनी हेलो स्पेस (HALO SPACE) के लिए ये एक्सपेरिमेंट किया गया था। ऐसे गुब्बारों से जल्द ही लोग स्पेस तक जा सकेंगे।

बैलून में बैठकर धरती का नजारा देख सकेंगे
दुनिया के कई देशों में स्पेस टूरिज्म की शुरुआत हो चुकी है। एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स इसी साल आम लोगों को रॉकेट के जरिए स्पेस तक पहुंचा चुकी है। हालांकि, यह काफी महंगा है, इसलिए अब HALO ने इसके सस्ते विकल्प के रूप में ‘स्पेस कैप्सूल’ तैयार किया है।

इस ‘स्पेस कैप्सूल’ में बैठाकर यात्रियों को धरती से 40 किलोमीटर ऊंचाई तक ऐसे एटमॉस्फियर में ले जाते हैं, जहां जीरो प्रेशर है। इसे हम स्ट्रेटोस्फियर कहते हैं। वहां पहुंचकर यात्री को धरती का किनारा (EARTH EDGE) नजर आता है।

देवेंद्र ओझा ने बताया कि स्पेस में किसी इंसान को भेजने से पहले हम यह सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं कि वह आसानी से वहां पहुंच सके और उसकी लैंडिंग और रिकवरी बिल्कुल सेफ हो। HALO के साथ मिलकर यही एक्सपेरिमेंट किया जा रहा है।

प्लेन या रॉकेट में स्ट्रेटोस्फियर तक जाने से यात्रियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन हमने कंपनी के बनाए स्पेस कैप्सूल के साथ यह चेक किया कि क्या वह धरती से 40 किलोमीटर की ऊंचाई पर वहां का तापमान और प्रेशर झेल सकता है या नहीं? क्या कैप्सूल में जाकर हम सेफ लौट सकते हैं?

स्पेस कैप्सूल की टेस्टिंग कामयाब
TIFR के मुताबिक इस स्पेस कैप्सूल का लॉन्च और टेस्टिंग 100% कामयाब रही है। उन्हें बहुत अच्छा डेटा मिला है। जिस हाइट पर वे कैप्सूल को ले जाना चाहते थे, उससे भी ज्यादा हाइट पर ले गए। एक्सपेरिमेंट का आखिरी चरण पेलोड की रिकवरी (गुब्बारे से अलग होने के बाद) था, लैंडिंग भी कामयाब रही।

अब इसी कैप्सूल में इंसानों को अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है। भारत में भी स्पेस टूरिज्म पर काम शुरू हो गया है और उनके इस एक्सपेरिमेंट से आने वाले दिनों में कई कंपनियों और सरकार को बहुत मदद मिलेगी।

डॉ. देवेंद्र ओझा के मुताबिक, यह बैलून एक स्पेशल पॉलिथीन मटेरियल का बना हुआ है और हीलियम गैस की वजह से यह हवा में आसानी से उड़ सकता है। एक्सपेरिमेंट के दौरान इसके किसी रिहायशी इलाके में गिरने के सवाल पर डॉ. ओझा ने कहा- ’हम ऐसे एटमॉस्फियर में बिल्कुल भी टेस्ट नहीं करते, जिससे आम लोगों को नुकसान हो।

TIFR के साइंटिस्ट सुरेश श्रीनिवास बताते हैं कि बैलून में कई तरह के रिमोट सेंसर लगे हैं, जिनकी मदद से हम इसे ऑपरेट करते हैं और सिर्फ सेफ जगह पर ही लैंड करवाते हैं। बैलून जब उड़ता है तो हमारे पास उसकी सारी रीडिंग और लाइव GPS लोकेशन होती है। इसके अलावा हमारे पास हाई रेजोल्यूशन वाले गगन और गूगल मैप हैं। रेडियो फ्रीक्वेंसी की मदद से हम इस पर पूरी तरह कंट्रोल रखते हैं।

हैदराबाद बन रहा बैलून टेस्टिंग का सबसे बड़ा हब
इस तरह के प्रोजेक्ट से भारत को होने वाले फायदे के सवाल पर ओझा ने बताया कि दुनिया में कुछ ही देश ऐसे हैं, जिनके पास जीरो प्रेशर बैलून टेस्टिंग की टेक्नोलॉजी है। भारत इनमें से एक है। इस तरह के प्रोजेक्ट से हमें न सिर्फ रेवेन्यू मिलता है, बल्कि पूरी दुनिया में हमारा नाम होता है।

स्पेस बैलून हमारे देश में पहले से बन रहे हैं। लॉन्चिंग फैसिलिटी हमारे पास है। इस तरह के एक्सपेरिमेंट से आने वाले वक्त में हमारी डिपेंडेंसी खत्म हो जाएगी और हम स्पेस टूरिज्म के लिए तैयार हो जाएंगे।

हाल के दिनों में हमारी फैकल्टी को देश-विदेश की कई कंपनियों से इस तरह की टेस्टिंग और ट्रायल की रिक्वेस्ट मिली है। हालांकि अब तक अवेलेबल स्लॉट के हिसाब से हमने कुछ प्राइवेट कंपनियों की रिक्वेस्ट को ही स्वीकार किया है। आने वाले वक्त में हम कुछ और एक्सपेरिमेंट हैदराबाद में करेंगे।

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