पुरानी कहावत है गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिलता और शास्त्रों में भी गुरु को भगवान से भी ऊपर माना जाता है, क्योंकि गुरु ही भगवान की कृपा पाने का रास्ता बताते हैं। गुरु का मार्गदर्शन हमारा जीवन बदल सकता है, इसलिए बहुत ही सोच-समझकर किसी योग्य व्यक्ति को ही अपना गुरु बनाना चाहिए।
संत सूरदास से जुड़ा एक किस्सा बहुत प्रचलित है। संत सूरदास के पिता रामदास एक गायक थे। वे भजन गाते थे और बालक सूरदास भजन सुनते-सुनते खुद भी गाने लगा था। ऐसा माना जाता है कि जन्म से ही सूरदास को कुछ दिखाई नहीं देता था।
जैसे-जैसे सूरदास बड़े हो रहे थे, उनका मन धर्म में ज्यादा लगने लगा था। उनके पिता रामदास को चिंता रहने लगी कि अब इस बालक का क्या होगा। एक दिन सूरदास जी के जीवन में वल्लभाचार्य जी का आगमन हुआ।
वल्लभाचार्य जी ने सोचा कि ये बालक ऐसे ही व्यर्थ बोलता रहा, इधर-उधर की बातें ज्यादा सुनाता रहा तो भटक जाएगा। इसके ज्ञान को कहीं एकत्र करना चाहिए। इसके बाद उन्होंने सूरदास जी को दीक्षा दी।
वल्लभाचार्य जी ने सूरदास जी को श्रीकृष्ण लीलाओं का दिव्य दर्शन कराया, श्रीकृष्ण के बारे में सबकुछ बताया। इसके बाद श्रीनाथ जी के मंदिर में कृष्ण लीलाओं का गान करने की जिम्मेदारी सूरदास को दे दी। इसके बाद समय के साथ सूरदास जी की ख्याति चारों ओर फैल गई।
जीवन प्रबंधन
इस किस्से से हम ये बात समझ सकते हैं कि हमारे जीवन में गुरु का महत्व कितना अधिक है। अगर सही गुरु मिल जाए तो किसी भी व्यक्ति का जीवन बदल सकता है। इसलिए हमें बहुत सोच-समझकर किसी को गुरु बनाना चाहिए। जिसे गुरु बनाते हैं, उसकी हर एक बात पर भरोसा करना चाहिए और उनके मार्गदर्शन को जीवन में उतारना चाहिए, तभी हमारे जीवन में सुख-शांति आ सकती है।
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