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25 गायों के लिए आधी रात खुला द्वारकाधीश:मालिक ने लंपी ठीक होने की मन्नत मांगी थी

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acn18.com द्वारका/भगवान श्रीकृष्ण की नगरी ‘द्वारका’ के इतिहास में शायद ये पहला मौका है, जब द्वारकाधीश मंदिर के दरवाजे आधी रात को खोले गए। जी हां, बुधवार की रात यहां कुछ ऐसा ही हुआ। मंदिर के पट किसी VIP के लिए नहीं, बल्कि 25 गायों के लिए खोले गए। ये गायें अपने मालिक के साथ 450 किमी की पैदल यात्रा कर कच्छ से द्वारका पहुंची थीं।

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पहले जानते हैं, ऐसा क्यों हुआ
दरअसल, कच्छ में रहने वाले महादेव देसाई की गोशाला की 25 गायें करीब दो महीने पहले लंपी वायरस से ग्रस्त हो गई थीं। इस दौरान पूरे सौराष्ट्र में लंपी वायरस से गायों के मरने का सिलसिला जारी था। इसी बीच महादेव ने भगवान द्वारकाधीश से मन्नत मांगी थी कि अगर उनकी गायें ठीक हो गईं तो वे इन गायों के साथ आपके दर्शन करने जाएंगे।

परिक्रमा और प्रसाद ग्रहण करती गायों की 3 फोटोज

बुधवार की रात 12 बजे गायें मंदिर में पहुंचीं।
बुधवार की रात 12 बजे गायें मंदिर में पहुंचीं।
गायों ने भगवान द्वारकाधीश के दर्शन के बाद मंदिर की परिक्रमा की।
गायों ने भगवान द्वारकाधीश के दर्शन के बाद मंदिर की परिक्रमा की।
दर्शन के बाद गायों ने द्वारकाधीश का प्रसाद ग्रहण किया।
दर्शन के बाद गायों ने द्वारकाधीश का प्रसाद ग्रहण किया।

लोगों को परेशानी न हो इसलिए आधी रात को खोला गया मंदिर
मंदिर प्रशासन के लिए सबसे बड़ी समस्या गायों की मंदिर में एंट्री को लेकर ही थी, क्योंकि यहां दिन भर हजारों भक्तों की भीड़ रहती है। ऐसे में गायों के पहुंचने से मंदिर की व्यवस्था बिगड़ जाती। इसलिए तय किया गया कि मंदिर आधी रात को खोला जाए। ऐसा भी सोचा गया कि भगवान श्रीकृष्ण तो गायों के ही भक्त थे, तो वे रात में भी इन्हें दर्शन दे सकते हैं। इस तरह रात के 12 बजे के बाद मंदिर के दरवाजे खोले गए।

द्वारका पहुंचकर गायों ने सबसे पहले भगवान द्वारकाधीश के दर्शन करने के बाद मंदिर की परिक्रमा भी की। इस समय भी मंदिर परिसर में कई लोग गायों के स्वागत के लिए मौजूद थे। मंदिर के पुजारियों ने भगवान के प्रसाद के अलावा इनके लिए चारे और पानी की भी व्यवस्था की थी।

करीब दो घंटे के विश्राम के बाद सभी गायें मंदिर से रवाना हुईं ।
करीब दो घंटे के विश्राम के बाद सभी गायें मंदिर से रवाना हुईं ।

ठीक हो गईं गायें, दूसरी गायों में भी नहीं फैला वायरस
महादेव बताते हैं, ‘भगवान द्वारकाधीश पर सब कुछ छोड़कर मैं गायों के इलाज में लग गया। कुछ दिन बाद ही गायें ठीक होने लगीं। करीब 20 दिन बाद सभी 25 गायें पूरी तरह स्वस्थ हो गईं। इतना ही नहीं, गोशाला की दूसरी गायों में भी लंपी वायरस का संक्रमण नहीं फैला। इनके पूरी तरह स्वस्थ हो जाने के बाद मैं इन्हें लेकर पैदल ही कच्छ से द्वारका के लिए रवाना हो गया।’

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